साढू पुराण : भजन अनूप के, ग़ज़ल जगजीत की, सबको मिलाकर मैनें गाई भी कव्वालियाँ
बोतल को खोलकर, शाम उसमे घोलकर,करने लगा पुरानी यादो की जुगालियाँभजन अनूप के, ग़ज़ल जगजीत की, सबको मिलाकर मैनें गाई भी कव्वालियाँयाद आई शादी, अपनी बरबादी तो मुझे,आज तक के सभी किस्सें याद आ गयें सपना था शादी कर बन जाउंगा मैं राजा,करता हूँ आजकल बीवी की हम्मालियाँलेकर बारात जब पहुँचा ससुर द्वारे, सारे