दौड़ भागकर सारा दिन थकी उचक्की धुप
आँगन में आ पसर गई कच्ची पक्की धुप
सारा दिन ना काम किया रही बजती झांझ
लेने दिन भर का हिसाब आती होगी साँझ
याद दिलाया तो रह गई हक्की-बक्की धुप
आँगन में आ, पसर गई कच्ची पक्की धुप
अम्मा ले के आ गई पापड़, बड़ी, अचार
ले ना आये खिचड़ी, समझ के मुझे बीमार
डरी डरी सी कोनें में ,खिसकी शक्की धुप
आँगन में आ, पसर गई कच्ची पक्की धुप
धुप-छाँव में दरी बिछा, ले आती अखबार
दादी जब तक ऐनक लाती,होती ये फरार
चढ़ती ठेठ मुंडेर पर नटखट लुक्की धुप
आँगन में आ, पसर गई कच्ची पक्की धुप
सर्दियों में काम हमारे कुछ भी ना आते
गर्मी की छुट्टी में हमारे सर पे डट जाते
सूरज जैसे फुफ्फा ,बुआ सी झक्की धुप
आँगन में आ,पसर गई कच्ची पक्की धुप
अब भी सर्दी आती हैं, सूरज भी उगता हैं
पर उस आँगन के दरवाजे ताला लगता हैं
खाली खाली आँगन पाके हैं भौचक्की धुप
आँगन में आ, पसर गई कच्ची पक्की धुप
नितीन