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नितीन कुमार उपाध्ये की डायरी

नितीन कुमार उपाध्ये

4 अध्याय
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nitin kumar upadhye ki dir

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पुस्तक के भाग

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साढू पुराण : भजन अनूप के, ग़ज़ल जगजीत की, सबको मिलाकर मैनें गाई भी कव्वालियाँ

23 अक्टूबर 2018
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बोतल को खोलकर, शाम उसमे घोलकर,करने लगा पुरानी यादो की जुगालियाँभजन अनूप के, ग़ज़ल जगजीत की, सबको मिलाकर मैनें गाई भी कव्वालियाँयाद आई शादी, अपनी बरबादी तो मुझे,आज तक के सभी किस्सें याद आ गयें सपना था शादी कर बन जाउंगा मैं राजा,करता हूँ आजकल बीवी की हम्मालियाँलेकर बारात जब पहुँचा ससुर द्वारे, सारे

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बेख़बर

11 नवम्बर 2018
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किसी भी बात का मुझपे असर नही होताजो मेरे हाल से वो बेख़बर नही होतावो जो कहते हैं चिरागों मे रोशनी ना रहीउनकी आँखों मे रोशनी का घर नही होताघरों से तंग हैं जहाँ दिलों के दरवाज़ेबूढ़े माँ -बाप का वहा बसर नही होतासदा सच बोलने के संग ये ही मुश्किल हैंकरे सबको ख़ुश यह ऐसा हुनर नही होता

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माँ का दर्द

11 नवम्बर 2018
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काश चिड़िया चहचहाती, मेरे आँगन मेंज़िन्दगी फिर मुस्कुराती,मेरे आँगन में ब्याह दी बिटिया सयानी, रच गई घर-बार मेबेटे की वो ही कहानी, हैं बहू के प्यार मेझान्झने कब झन झनझनाती, मेरे आँगन में अख़बार के प़न्ने पलटते, दिन मे वो, सौं स

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धुप

16 दिसम्बर 2018
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दौड़ भागकर सारा दिन थकी उचक्की धुपआँगन में आ पसर गई कच्ची पक्की धुप सारा दिन ना काम किया रही बजती झांझ लेने दिन भर का हिसाब आती होगी साँझ याद दिलाया तो रह गई हक्की-बक्की धुपआँगन में आ, पसर गई कच्ची पक्की धुप अम्मा ले के आ गई पापड़, बड़ी, अचार ले ना आये खिचड़ी, समझ के

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