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साढू पुराण : भजन अनूप के, ग़ज़ल जगजीत की, सबको मिलाकर मैनें गाई भी कव्वालियाँ

23 अक्टूबर 2018

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बोतल को खोलकर, शाम उसमे घोलकर,करने लगा पुरानी यादो की जुगालियाँ

भजन अनूप के, ग़ज़ल जगजीत की, सबको मिलाकर मैनें गाई भी कव्वालियाँ

याद आई शादी, अपनी बरबादी तो मुझे,आज तक के सभी किस्सें याद आ गयें

सपना था शादी कर बन जाउंगा मैं राजा,करता हूँ आजकल बीवी की हम्मालियाँ


लेकर बारात जब पहुँचा ससुर द्वारे, सारे दोस्त मिलकर देने लगे गालियाँ

देखा जब सबने कि मिल रही है मुझे तो, एक बीवी के संग चार चार सालियाँ

कैसे समझाऊँ उन्हें, कैसे बतालाऊ उन्हें, चोट मेरे साथ बड़ी भयंकर हो गई

लाख देखाभाला,बीवी निकली बवाला,और उस पर उसकी बहने बवालियाँ


दामाद मैं नया नया, ससुराल जब गया, मै भी था निराला और साली भी निरालियाँ

एक करवाती सैर, दुजी थी दबाती पैर, तीजी लाती भजियें चौथी चाय प्यालियाँ

ख़ुशी से मै झूम गया, सर मेरा घूम गया, जैसे मनचाहा एक राज-पाट था मिला

मेरी मर्जी के बिना पत्ता भी न हिलता था, क्या मज़ाल बाग मे झुम ले जो डालियाँ


सारा ससुराल सेवा करने खड़ा था मेरी, उसमे भी उनकी लगती थी पालियाँ

अच्छे दिन देखे ना गये मेरे नसीब से, बीना कारण उसने बुला ली रूदालियाँ

मेरी एक साली की शादी करके ससुर, ले आये मुझसे भी बेहतर दामाद जी

मेरा साढु मुझसे भी निकला कमीना लोगों,खोदी मेरी कब्र लेकर कुदालियाँ


स्विस के शहर जैसा,था जो ससुराल मेरा,बन गया एक ही दिन में सोमालिया

बेटा-बेटा कहकर, प्यार को लुटाने वाले, सास-ससुर करने लगें झोलझालियाँ

खाकर समोसा छोले हम क्या पराठां हुए, सालीयाँ हमारी तो बेवफ़ा सी हो गई

ताजा चीज़ लगा पिज्जा,लगता था नया जिज्जा, टपकाने लगी लार मेरी सालियाँ


दुश्मनियाँ साढू के सड़े जोक्स सुन सुन,सारा ससुराल अब बजाता हैं तालियाँ

पाँव दबवाता हैं, वो काम करवाता हैं, कुछ भी समझ नही पाती भोली-भालियाँ

सिहाँसन छूट गया, हक मेरे लूट गया, सास अब मूझको बेटा कहने लगी

दामाद से बेटा बनकर आजकल मैं, साफ करवाता हूँ बस जालियां औ नालियाँ


उसके दिलाये हूए झुमकों से हार गई, प्यार से दिलाई गई

मेरी वाली बालियाँ

उसके ही आने पर निकलती हैं अब तो, चांदी की कटोरीयाँ और सोने की थालियाँ

बड़े जोर शोर से ढ़ूंढने लगा हूँ अब अपनी किसी एक साली के लिये पति

चाहे मेरा हाल आज से भी बुरा हो जाए, मंजूर है मुझे फिर सारी वो प्रणालियाँ


अपने पति की पीड़ा समझ नही हैं पाती, इन दूखी पतियों की घर-वालियाँ

सास-बहु,ननद-भाभी,देरानी-जेठानी से कडा साढू का ये रिश्ता मैने तो निभा लिया

आपने भी कभी यह दुख झेला हो तो, मेरे संग आप भी कहो मी टू, मी टू

अष्टमी को अम्बे माता से हैं प्रार्थना यही,हँसी खुशी सबकी मने हर दिवालियाँ

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बोतल को खोलकर, शाम उसमे घोलकर,करने लगा पुरानी यादो की जुगालियाँभजन अनूप के, ग़ज़ल जगजीत की, सबको मिलाकर मैनें गाई भी कव्वालियाँयाद आई शादी, अपनी बरबादी तो मुझे,आज तक के सभी किस्सें याद आ गयें सपना था शादी कर बन जाउंगा मैं राजा,करता हूँ आजकल बीवी की हम्मालियाँलेकर बारात जब पहुँचा ससुर द्वारे, सारे

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