चलो आज तुमने सिरे से
नकारा तो नहीं,
क्या हुआ गर प्यार से
पुकारा तो नहीं,
काफी है यह एक अहसास मेरे
खुश रहने को,
कि तुम्हे भी दर्द है
हमारे एक ना हो पाने का,
यह जीवन साथ ना बिता पाने
का |
मालूम है तुमको...?
तुम्हे आसान होता होगा,
मगर मैं...
हर पल.. तुम्हारी ही विरह
वेदना में जिया.. गला.. घुटा |
चलो अब तुम्हारे हिसाब से
ही जीते हैं,
थोडा जलते हैं... गलते
हैं.. घुटते हैं...
और फिर शायद विरह के पल
ही सच्चे प्रेम की अनुभूति....
आओ तुम्हे ऐसे ही जीते
हैं अब... तुम्हारे विरह में.. शाश्वत... ||