एक अरसा गुजर गया,
अपने बीते बचपन को देखे,
माटी की सौंधी सौंधी खूशबू,
बारिश की पहली फुहार में भीगना,
नंगे पाँव खेत खलिहान की दौड़,
उधर बरखा ने जोर पकड़ा,
और इधर चले पे पकोड़ों ने,
बारिश की वजह से कच्चे आँगन में,
जगह जगह पानी में रेलम-पेल सी मच गयी,
बच्चों ने रद्दी से नाव बना डाली,
उनमे से कुछ कश्तियों ने,
बचपन बुला जवानी याद दिला दी,
क्यूंकि उनमे लिखे मेरे शब्द अब धूल से रहे थे,
जैसे इन बीते हुए अरसे में मैं उसे भूल सा गया था,
अभी भूल भलैया में ही था,
कि पकोड़ों ने तन्द्रा तोड़ी,
दौड़ा उसकी गली में एक झलक पाने को,
वहां भी कुछ बचपन नावों कि रेलम-पेल में थे,
कोई दिखा पर मैं वापस हो लिया,
मुझे इस बारिश में फिर से,
मामा नहीं बनना था.......