आजादी के इतने सालों बाद भी प्राइवेट नौकरी करने वालों के स्थिति पर किसी राजनेता या पार्टी की नजर नहीं पड़ी, सभी पार्टियाँ सत्ता में बारी बारी से आती रही जाती रही लेकिन किसी ने प्राइवेट नौकरी वालों के परेशानी से अनजान बनें रहें, सरकारी नौकरी वालों के लिय नये नये पे कमीशन, उससे किसी को कोई परेशानी नहीं हो सकती लेकिन उनके साथ साथ प्राइवेट नौकरी वालों पर भी ध्यान देना चाहिय था, प्राइवेट नौकरी वालों के अनदेखी के पीछे बहुत बड़ा कारण है जिसे नेताओं की मजबूरी भी कहा जा सकता है।
चुनाव में करोरो रुपये खर्च होतें हैं जिसमे उन्ही व्यापारियों का पैसा लगा होता है जिनको मजदूरों को मजदूरी देना होता, व्यापारियों द्वारा चुनाव में पैसा खर्च करने का मकसद अपने व्यापार को ज्यादा से ज्यादा बढाना और ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाना है ऐसे में वो मजदूरों को ज्यादा मजदूरी कैसे दें सकतें, रही बात नेताओं की तो उनमें इतनी हिम्मत कहा की चुनाव में उनके लिय जो पानी की तरह पैसा बहाया हो उनके सहमति के बिना कोई फैसला लें, समस्या गंभीर है लाखों लोग इस समस्या के कारण परेशान हैं, इस समस्या के हल के लिय नेताओं को गंभीरता से फैसला लेना होगा इसमे अर्चने बहुत है।
मोदी सरकार ने मजदूरों के समस्याओं को ध्यान में रखते हुये निम्नतम मजदूरी दर 15000 प्रति माह करने पर विचार कर रहें हैं मुझे अभी भी लगता है कि ए काम पूरा नहीं होगा क्योकि वो ताकतें जिनको इससे नुकसान होनेवाला है वो इसे पूरा नहीं होने देंगें, इसलिय अभी भी मुझे इसमे राजनीति हीं नजर आ रही है। अगर मोदी जी इसको लागू करनें में सफल हुएं तो लाखों मजदूरों का उनको साथ मिलेगा अब फैसला उनको लेना है की उनको लाखों मजदूरों के साथ चाहिय या देश के पूजीपतियों का.