अगर हम भारत की जनसँख्या को ओलंपिक्स में जीते हुये पदको से तुलना करे तो पूरी दुनिया में भारत से बुरा प्रदर्शन करने वाला कोई दूसरा देश नहीं है. ये सुनकर थोड़ा अजीब लगता है की 1. 2 अरब लोगो का देश खेल ो में औसतन एक पदक से भी कम जीत पाया है| एक स्वर्ण एवम 2 कांस्य पदको के साथ बीज़िंग 2008 का ओलिंपिक भारत के लिए अब तक सबसे सफल ओलिंपिक रहा है |
ये कहना बिलकुल भी गलत होगा की भारत अच्छे खिलाडी प्रस्तुत / पैदा नहीं कर पाया है क्योंकि सचिन तेंदुलकर एवम ध्यानचंद जैसे महान
खिलाड़ियों की जन्मभूमि भारत ही है|भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम तो एक दिवसीय खेलो में अभी नंबर एक पर है वही हॉकी पुरुष टीम ने 20 वी
शताब्दी में लगातार 6 ओलंपिक्स में स्वर्ण पदक जीता था| ये सब तथ्य साबित करते है की भारत में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है कमी है तो प्रतिभा
का आदर करने वालो की |
स्थानीय खेलो के विकास में बाधा की मुख्य वजह भारतीय संस्कृति भी है | आज के समय में लगभग सभी परिवार अपने बच्चो को डॉक्टर,वकील इंजीनियर आदि बनाना चाहते है| जब कोई बच्चा किसी खेल में कुशल होता है तो रिश्तेदार एवम परिवार वाले उसे खेलो की बजाये पढाई पर ध्यान देने के लिए दबाव डालते है| सोचो अगर सचिन के साथ ऐसा होता तो क्या भारत कभी ऐसा महानतम क्रिकेटर देख पाता ?
ओलंपिक्स में भारत के कमजोर प्रदर्शन की वजह 70 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या का ग्रामीण क्षेत्रो में रहना और गरीबी भी है | खेल तो दूर की बात कई परिवारों का समय तो दैनिक भोजन जुटाने एवम इसके बारे में सोचने में ही निकल जाता है |
गरीब अवसंरचना और शासन भी इस में अपनी भूमिका निभा रहे हैं| जमीनी स्तर पर सुविधाओं का अभाव एक और समस्या है अगर कोई खिलाड़ी एक गांव के अंतर्गत आता है तो वहाँ अभ्यास और आगे बढ़ने के लिए कोई रास्ता नहीं है । गरीब अवसंरचना और ऐसी कई बाधाये खिलाड़ियों का उत्साह कम कर रही है |
इस विषय में शोधकर्ताओं ने कर्नाटक और राजस्थान के 300 से अधिक गाँवो में शोध किया और उनसे पूछा की " पिछले एक दशक में उन्होंने कोनसे सबसे अच्छे कामो के बारे में सुन रखा है ?" शोध के नतीजो के अनुसार इंजीनियरिंग ,डॉक्टर, वकील और अध्यापक गाँव वालो की नजरो में सबसे
अच्छे काम होते है | ओलंपिक्स तो दूर की बात उनके जवाबो में खेलो का जिक्र तक नहीं था | ये नतीजे दर्शाते है की सामाजिक गतिशीलता और गरीब बुनियादी ढांचा भी ओलंपिक में भारत के खराब प्रदर्शन के लिए कारण हैं।
इन सबके साथ ओलंपिक्स में भारत के कमजोर प्रदर्शन की एक मुख्य वजह क्रिकेट भी है | भारत में क्रिकेट को एक धर्म की तरह माना जाता है अगर कोई क्रिकेट के अलावा किसी और खेल में अच्छा है और उसे आजीविका बनाना चाहता है तो उसे पागल समझा जाता है और हतोत्साहित किया जाता है | कुछ हद तक लोगो का दूसरे खेलो के प्रति ऐसा व्यवहार सही भी है| क्योंकि अमेरिका जैसे देश में खिलाडी व्यायाम जैसे छोटे खेलो को जीविका बनाकर भी गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकते है मगर भारत में अगर कोई खिलाडी ओलंपिक जैसे बड़े दिवस में पदक भी जीत जाता है तो कुछ सालो के बाद गुणवत्तापूर्ण जीवन तो दूर की बात मध्यम वर्ग ज़िन्दगी भी ठीक से नहीं जी पाता है | उन्हें पूरी ज़िन्दगी भर जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है| असुरक्षा की ये तस्वीर खिलाड़ियों को अपने सपने को पनपने और उनको पूरा करने से रोकती है| यही कारण है की नवयुवक क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलो का प्रशिक्षण लेने से हिचकिचाते है | भारतीय क्रिकेट में बहुत कुशल है लेकिन दुर्भाग्यवश क्रिकेट ओलंपिक का हिस्सा नहीं है |
लेकिन माता - पिता एवंम अध्यापको को अपने बच्चो के खेलो के प्रति झुखाव और उनके अच्छे प्रदर्शन करने की क्षमता की पहचान करनी चाहिए |
बच्चो को पढ़ाई के साथ -साथ खेलों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।खेल सुविधाएं शहरों के साथ ही गांवों में भी उपलब्ध करायी जाना चाहिए। अधिक से अधिक खेल प्रतियोगिताओं का स्कूल स्तर पर आयोजित किया जाना चाहिए। सरकार को नवोदित खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करने के लिए धन उपलब्ध कराने चाहिए।ओलिंपिक एवं अन्य खेलो के चयन के दौरान कोई भेदभाव या पक्षपाती राय नहीं
होनी चाहिए | भारत में हर खेल क्रिकेट की तरह प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि खिलाडी पूर्ण उत्साह के साथ खेल सके |