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परी - - - - - - -

23 नवम्बर 2015

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----------परी --------


कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। 

ध्यान लगाकर सुनना। 

गुड़िया एक नन्ही सी। 

इस धरती पर जन्मी। 


नन्हीं की आँखों में भी 

थे कुछ स्वप्न सुनहरे। 

दीपों का त्यौहार दीवाली। 

मन उसके बहुत भाता था। 


कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी 

वो सब लेना चाहती थी। 

दादी से बोली वो इक दिन। 

मैं भी दादी अपना घर सजाऊँ। 


पैसे कहाँ है नन्हीं बिटिया 

ये सब कैसे तुम्हें दिलाऊँ। 

देख आँख में आंसू दादी के 

वो पल में सहमी सहमी सी। 


लेकर अपने ख्याव सुनहरे 

सपनों में गुम हो गयी। 

परी एक सपनों में आई। 

निदिया से उसे जगाया। 


ना होना उदास तू नन्हीं। 

ये सब मैं तुझे दिलाऊँ। 

सपने में उपहार अनेकों 

परी ने उसको दे डाले।


झालर और कंडीलों से, 

घर उसका रोशन हो गया। 

नन्ही की खुशियों को 

जैसे पंख अनेको लग गये। 


आँख खुली जब उसकी 

सपने उसके बिखर गये 

हाय बिधा ता तूने ऐसा 

कैसा कृत्य किया रे!!! 

--------बीना (अलीगढ़ी) 

🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁आज की मेरी रचना उन नन्हीं कलियों को समर्पित है जो गरीबी और धनाभाव के कारण अपनी छोटी छोटी खुशियों से महरूम हो जाती है...... आओ कुछ ऐसा जतन करें किसी एक कली की खुशियों का हम शबब बने तब शायद हो हमारी सच्चे अर्थों में दीवाली.....धन्यवाद 

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वर्तिका बहन हृदयतल से आभारी हूँ जो आपने मेरे मन की पीड़ा को मान दिया... पहल तो करनी ही होगी सभी को आगे आकर...

24 नवम्बर 2015

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वर्तिका

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उत्कृष्ट रचना, सच में, ऎसी अनेक नन्हीं बिटिया है जो गरीबी और धनाभाव के कारण अपनी छोटी छोटी खुशियों से महरूम हो जाती है, ऎसी नन्ही बच्चियों को शिक्षा मिलें ताकि वो अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकें!

24 नवम्बर 2015

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9 नवम्बर 2015
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🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁----------परी --------कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। ध्यान लगाकर सुनना। गुड़िया एक नन्ही सी। इस धरती पर जन्मी। नन्हीं की आँखों में भी थे कुछ स्वप्न सुनहरे। दीपों का त्यौहार दीवाली। मन उसके बहुत भाता था। कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी वो सब लेना चाहती थी। दादी से बोली वो इक दिन। मैं भी दादी

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गोवर्धन गिरधारी.

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आज के पर्व पर मेरी ताजा रचना दोस्तो आप सभी को समर्पित........ ---------गोवर्धन गिरधारी------🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹जल की झड़ी लगी गोकुल में। इन्द्र ने अपना कोप दिखाया। मेघों नेभीजमकरतांडवमचाया। त्राहि-त्राहि मच गई चहुँ ओर। नहीं कुछ समझ सके नर नारी। सुनामी की लहरों के आगे। जतन कर कर हारे बृज बासी। जान ब

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🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁-------माँ ऐसी होतीं हैं-------------------------------------------जन्म लिया नन्हे ने, सबके चेहरे खिल गये। माँ भी तो खुश होती, पर चिन्ताओं से घिर जाती। नन्हा अब चलना सीखेगा, घुटुउन घर आँगन दौड़ेगा, चिन्ता के कारण ये सारे।  चोट कहीं ना लग जाये, घर का सारा सामान उठाती। घर के वास्तुशा

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गोवर्धन गिरधारी.

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🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁----------परी --------कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। ध्यान लगाकर सुनना। गुड़िया एक नन्ही सी। इस धरती पर जन्मी। नन्हीं की आँखों में भी थे कुछ स्वप्न सुनहरे। दीपों का त्यौहार दीवाली। मन उसके बहुत भाता था। कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी वो सब लेना चाहती थी। दादी से बोली वो इक दिन। मैं भी दादी

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परी - - - - - - -

24 नवम्बर 2015
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🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁----------परी --------कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। ध्यान लगाकर सुनना। गुड़िया एक नन्ही सी। इस धरती पर जन्मी। नन्हीं की आँखों में भी थे कुछ स्वप्न सुनहरे। दीपों का त्यौहार दीवाली। मन उसके बहुत भाता था। कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी वो सब लेना चाहती थी। दादी से बोली वो इक दिन। मैं भी दादी

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24 नवम्बर 2015
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🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁----------परी --------कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। ध्यान लगाकर सुनना। गुड़िया एक नन्ही सी। इस धरती पर जन्मी। नन्हीं की आँखों में भी थे कुछ स्वप्न सुनहरे। दीपों का त्यौहार दीवाली। मन उसके बहुत भाता था। कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी वो सब लेना चाहती थी। दादी से बोली वो इक दिन। मैं भी दादी

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🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁-------माँ ऐसी होतीं हैं-------------------------------------------जन्म लिया नन्हे ने, सबके चेहरे खिल गये। माँ भी तो खुश होती, पर चिन्ताओं से घिर जाती। नन्हा अब चलना सीखेगा, घुटुउन घर आँगन दौड़ेगा, चिन्ता के कारण ये सारे।  चोट कहीं ना लग जाये, घर का सारा सामान उठाती। घर के वास्तुशा

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माँ गंगा

26 नवम्बर 2015
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🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺---माँ गंगा को मेरा अर्पण - - - - एक कोशिश समीक्षार्थ...... रहेंगे कब तलक प्यासे नदी तुम लौट भी आओ/ना तड़पाओ रह रहके हमें अब लौट भी आओ//-----------------------------------------अतृप्त तन मन अपना अबतो आत्मा तक प्यासी/ये तेरा रूप कैसा है कि मन बैचेन है मेरा//-----------------------

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माँ ऐसी होतीं हैं...

26 नवम्बर 2015
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🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁-------माँ ऐसी होतीं हैं-------------------------------------------जन्म लिया नन्हे ने, सबके चेहरे खिल गये। माँ भी तो खुश होती, पर चिन्ताओं से घिर जाती। नन्हा अब चलना सीखेगा, घुटुउन घर आँगन दौड़ेगा, चिन्ता के कारण ये सारे।  चोट कहीं ना लग जाये, घर का सारा सामान उठाती। घर के वास्तुशा

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माँ ऐसी होतीं हैं...

11 दिसम्बर 2015
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