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-------माँ ऐसी होतीं हैं-------
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जन्म लिया नन्हे ने,
सबके चेहरे खिल गये।
माँ भी तो खुश होती, पर
चिन्ताओं से घिर जाती।
नन्हा अब चलना सीखेगा,
घुटुउन घर आँगन दौड़ेगा,
चिन्ता के कारण ये सारे।
चोट कहीं ना लग जाये,
घर का सारा सामान उठाती।
घर के वास्तुशास्त्र को अचानक ही बदल डालती।
चिन्ता फिर भी खत्म ना होती।
नन्हा अब लिखना सीखेगा।
आड़े-तिरछे हाथ चलाकर,
नित नये आयाम रचेगा।
घर की हर तख्ती बनती स्लेट,
सारे घर की दीवारों को उसके लिये वो वोर्ड बनाती।
चिन्तायें खत्म कहाँ हो पाती।
युवा हो रहे नन्हें के सपने।
उसकी अपनी आँखों में पलते।
आँखों ही आँखों में वो,
अप्सरा खोज लेती है रोज।
सेहरा बाँध सिर पे नन्हें के,
उसका झट वो ब्याह रचाती।
ळिख देती अनगिनत प्रेम कहानी, पर्दो और दीवारों पर।
चिन्ता चिता से बढ़कर होती,
वो अब भी चिन्ता में डूबी।
मेरा!!!!!! नन्हा मुन्ना,
गृहस्थाश्रम के चंगुल में,
कैसे रोज पिसता रहता।
मेरा बोझ भी अब!!!!
उसके ही काँधे पे आया।
रोज खाँसती रहती वो
फिर भी बस चुप रहती है।
माँ ऐसी होती है........
माँ तो बस ऐसी ही होतीं हैं।
------बीना (अलीगढ़ी)
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