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गोवर्धन गिरधारी.

24 नवम्बर 2015

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बीना शर्मा की अन्य किताबें

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परी - - - - - - -

9 नवम्बर 2015
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🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁----------परी --------कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। ध्यान लगाकर सुनना। गुड़िया एक नन्ही सी। इस धरती पर जन्मी। नन्हीं की आँखों में भी थे कुछ स्वप्न सुनहरे। दीपों का त्यौहार दीवाली। मन उसके बहुत भाता था। कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी वो सब लेना चाहती थी। दादी से बोली वो इक दिन। मैं भी दादी

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गोवर्धन गिरधारी.

17 नवम्बर 2015
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आज के पर्व पर मेरी ताजा रचना दोस्तो आप सभी को समर्पित........ ---------गोवर्धन गिरधारी------🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹जल की झड़ी लगी गोकुल में। इन्द्र ने अपना कोप दिखाया। मेघों नेभीजमकरतांडवमचाया। त्राहि-त्राहि मच गई चहुँ ओर। नहीं कुछ समझ सके नर नारी। सुनामी की लहरों के आगे। जतन कर कर हारे बृज बासी। जान ब

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माँ ऐसी होतीं हैं...

23 नवम्बर 2015
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🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁-------माँ ऐसी होतीं हैं-------------------------------------------जन्म लिया नन्हे ने, सबके चेहरे खिल गये। माँ भी तो खुश होती, पर चिन्ताओं से घिर जाती। नन्हा अब चलना सीखेगा, घुटुउन घर आँगन दौड़ेगा, चिन्ता के कारण ये सारे।  चोट कहीं ना लग जाये, घर का सारा सामान उठाती। घर के वास्तुशा

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गोवर्धन गिरधारी.

23 नवम्बर 2015
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परी - - - - - - -

23 नवम्बर 2015
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🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁----------परी --------कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। ध्यान लगाकर सुनना। गुड़िया एक नन्ही सी। इस धरती पर जन्मी। नन्हीं की आँखों में भी थे कुछ स्वप्न सुनहरे। दीपों का त्यौहार दीवाली। मन उसके बहुत भाता था। कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी वो सब लेना चाहती थी। दादी से बोली वो इक दिन। मैं भी दादी

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परी - - - - - - -

24 नवम्बर 2015
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🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁----------परी --------कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। ध्यान लगाकर सुनना। गुड़िया एक नन्ही सी। इस धरती पर जन्मी। नन्हीं की आँखों में भी थे कुछ स्वप्न सुनहरे। दीपों का त्यौहार दीवाली। मन उसके बहुत भाता था। कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी वो सब लेना चाहती थी। दादी से बोली वो इक दिन। मैं भी दादी

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परी - - - - - - -

24 नवम्बर 2015
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🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁----------परी --------कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। ध्यान लगाकर सुनना। गुड़िया एक नन्ही सी। इस धरती पर जन्मी। नन्हीं की आँखों में भी थे कुछ स्वप्न सुनहरे। दीपों का त्यौहार दीवाली। मन उसके बहुत भाता था। कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी वो सब लेना चाहती थी। दादी से बोली वो इक दिन। मैं भी दादी

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परी - - - - - - -

24 नवम्बर 2015
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🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁----------परी --------कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। ध्यान लगाकर सुनना। गुड़िया एक नन्ही सी। इस धरती पर जन्मी। नन्हीं की आँखों में भी थे कुछ स्वप्न सुनहरे। दीपों का त्यौहार दीवाली। मन उसके बहुत भाता था। कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी वो सब लेना चाहती थी। दादी से बोली वो इक दिन। मैं भी दादी

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गोवर्धन गिरधारी.

24 नवम्बर 2015
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माँ ऐसी होतीं हैं...

24 नवम्बर 2015
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🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁-------माँ ऐसी होतीं हैं-------------------------------------------जन्म लिया नन्हे ने, सबके चेहरे खिल गये। माँ भी तो खुश होती, पर चिन्ताओं से घिर जाती। नन्हा अब चलना सीखेगा, घुटुउन घर आँगन दौड़ेगा, चिन्ता के कारण ये सारे।  चोट कहीं ना लग जाये, घर का सारा सामान उठाती। घर के वास्तुशा

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माँ ऐसी होतीं हैं...

26 नवम्बर 2015
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🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁-------माँ ऐसी होतीं हैं-------------------------------------------जन्म लिया नन्हे ने, सबके चेहरे खिल गये। माँ भी तो खुश होती, पर चिन्ताओं से घिर जाती। नन्हा अब चलना सीखेगा, घुटुउन घर आँगन दौड़ेगा, चिन्ता के कारण ये सारे।  चोट कहीं ना लग जाये, घर का सारा सामान उठाती। घर के वास्तुशा

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माँ गंगा

26 नवम्बर 2015
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🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺---माँ गंगा को मेरा अर्पण - - - - एक कोशिश समीक्षार्थ...... रहेंगे कब तलक प्यासे नदी तुम लौट भी आओ/ना तड़पाओ रह रहके हमें अब लौट भी आओ//-----------------------------------------अतृप्त तन मन अपना अबतो आत्मा तक प्यासी/ये तेरा रूप कैसा है कि मन बैचेन है मेरा//-----------------------

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माँ ऐसी होतीं हैं...

26 नवम्बर 2015
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🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁-------माँ ऐसी होतीं हैं-------------------------------------------जन्म लिया नन्हे ने, सबके चेहरे खिल गये। माँ भी तो खुश होती, पर चिन्ताओं से घिर जाती। नन्हा अब चलना सीखेगा, घुटुउन घर आँगन दौड़ेगा, चिन्ता के कारण ये सारे।  चोट कहीं ना लग जाये, घर का सारा सामान उठाती। घर के वास्तुशा

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माँ ऐसी होतीं हैं...

11 दिसम्बर 2015
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🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁-------माँ ऐसी होतीं हैं-------------------------------------------जन्म लिया नन्हे ने, सबके चेहरे खिल गये। माँ भी तो खुश होती, पर चिन्ताओं से घिर जाती। नन्हा अब चलना सीखेगा, घुटुउन घर आँगन दौड़ेगा, चिन्ता के कारण ये सारे।  चोट कहीं ना लग जाये, घर का सारा सामान उठाती। घर के वास्तुशा

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