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प्रेम की अधूरी तमन्ना

27 जनवरी 2022

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दो जिस्मों के मिलन से तन के फूल न खिले
बो मिले भी उनसे तो अधूरे ही मिले 
इस तरह रात में जलाए चिराग 
सुबह के इंतजार में 
जुगनू भी न मिले 
दिन में इस तरह फूल खिले
भोरे भी रहे खुश्बू के इंतजार m




दीपक कुमार दुबे

दीपक कुमार दुबे की अन्य किताबें

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चमचा गिरी की दुनिया

27 जनवरी 2022
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वा वा कितना मजा आ रहा हे आज फिर सब को उल्लूबनाया झूट को इस तरीके से बोला की सच भी शरमा जाएकाम न करने का भी आनंद बो ही जानते हे जो ऑफिस में बॉस को बेबाकुफ बनाने का प्रशंशा पत्र हर साल पाते हे&nbsp

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आडंबरों का मेकअप

27 जनवरी 2022
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दिल में खंजर ओर चेहरे पर गुलाब सी मुस्कान लिए घूमते हे लोग संभल के अपने दिल की बात को बताना दवा के न

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कल्पनाओं की दुनियां

27 जनवरी 2022
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भावनाओ के जाल में मन के पंछी को झुटी उड़ान से कल्पनाओं के सागर में डुबकी लगाने से हमको जो खुशी मिलती है बो हमारे वर्तमान को बीते हुए पलओर आने वाले कल के सपनो की खोखली दुनिया दे जाति हेदीपक क

4

प्रेम की अधूरी तमन्ना

27 जनवरी 2022
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दो जिस्मों के मिलन से तन के फूल न खिलेबो मिले भी उनसे तो अधूरे ही मिले इस तरह रात में जलाए चिराग सुबह के इंतजार में जुगनू भी न मिले दिन में इस तरह फूल खिलेभोरे भी रहे खुश्बू के इंत

5

क्या कहे

27 जनवरी 2022
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तमन्नाओं की हसरतें भी गुमशुदा हो गई हे दोस्तमाहोल ने भी कर ली दिल्लगी हसरतों के साथकिस्मत ने हुनर को मारा हे तमाचा शहर मेंशर्मिन्द हो गई तहजीब शहर की

6

मुआवजा

27 जनवरी 2022
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मेरे टूटे हुए सपनो का मुआवजा दे दे जिंदगीकुछ अनकहे सवालों का जबाव दे दे जिंदगीगूंगी हो गई हे तमन्ना ईश्क बेखुदी से हो गयापूजा करते हे लोग नफरतों के देवता कीझूट ओर फरेब की मौज हो गईछल कपट की सरेआम बाजा

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पैसा

27 जनवरी 2022
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एक रुपया बोला पैसे से तुम मुझे नही पहचानतेमैं तुम जैसे को नचा सकता हु मेरी ताक़त का एहसासकरा सकता हु इंसान को इंसान से लड़ा सकता हुभाई से भाई का बैर करा सकता हु पति पत्नी केरिश्ते में दरार ला सकता हु

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राह

28 जनवरी 2022
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जीवन की पगडंडियों के गड्डे इतने गहरे रहते हे कई बार उनकोभरने के बाद कुछ ऊबड़ खाबड़ रास्तों में इतना भटक जाते हे की जीवन की राह ही लगने लगती हे रास्ते में आने वाले पड़ाव ही को मंजिल समझ

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सच्चाई

28 जनवरी 2022
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हम हमारे मन की कल्पनाओं को कितनी उड़ान देलेकिन वास्तविकता तो यही हे बिना पैसे सब सूनइस लेखिनी का क्या महत्व जो दो वक्त की रोटी की भी जुगाड न कर पाए अपने जीवन उपर्जनभी न कर पाए क्या मोल जो अपने पर

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बसंत भी बदल गया

4 फरवरी 2022
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सूर्य के प्रकाश कि छटा हो या रंगो का रोमांच कही खो सा गया हे खाने कमाने कि कस्मोकस में जीवन जीने के रंग ही धुंधला गए हे वो खूबसूरती न रंगो में दिखती हे ना अपनो में सब बदल सा गया हे

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