पर्यावरण के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले सर सुुंदर लाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को वर्तमान उत्तराखंड में हुआ था। बहुगुणा को चिपको आंदोलन और बड़े बांधों को बनाए जाने विरोधी आंदोलनों का प्रमुख नेता माना जाता है।
भारत के प्रमुख पर्यावरण संरक्षक सुंदर लाल बहुगुणा के प्रयासों का ही नतीजा रहा कि आंदोलन के बाद 15 सालों तक के लिए उत्तराखंड में सरकार ने पेड़ काटने पर रोक लगा दिया।
इसके अलावा उन्होने 1965 से 1970 तक पहाड़ी क्षेत्रों में शराब बंदी पर रोक लगाने के लिए महिलाओं को एकत्रित किया और आंदोलन चलाया। सुंदर लाल बहुगुणा ने 1981 से 1983 के बीच पर्यावरण को बचाने का संदेश लेकर हिमालयी क्षेत्र में करीब 5000 किलोमीटर की यात्रा की। इस यात्रा ने न केवल उन्हें सुर्खियों में ले आई बल्कि आंदोलन देश में खास तौर पर चर्चित हुआ।
पर्यावरण बचाने की अलख जगाने वाले इस महान नेता को साल 2009 में भारत सरकार ने पद्म विभूषण से भी नवाजा।
क्या था चिपको आंदोलन
करीब 40 साल पहले उत्तरांचल की वादियों में पेड़ न काटने के लिए महिलाओं का एक नारा गूंजा था, पहले हमें काटो तब जंगल और पेड। इस आवाज के सामने पेड़ काटने वाले ठेकेदारों और सरकार सबको घुटने टेकने पड़े थे।
इस आंदोलन का नाम ही चिपको आंदोलन था। वन संरक्षण की इस अनोखी मुहिम ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इको फेमनिज्म या नारीवादी पर्यावरवाद का मुहावरा भी विकसित किया।
इस आंदोलन में महिलाएं काटे जा रहे पेड़ से चिपक जाती थीं। उनकी शर्त होती थी कि पहले उन्हेें काटा जाए फिर पेड़ को। इस आंदोलन को शुरू करने की पहल गौरा देवी ने किया था।
गौरा देवी जैसी महिलाओं और सुंदरलाल बहुगुणा के प्रयासों से ही पर्यावरण जैसा मुद्दा राजनीति में चर्चा का मुख्य विषय बना।