मंदिर वैदिक काल में एक ऐसी जगह होती थी जहाँ समाज का सबसे बुद्धिमान ब्यक्ति रहता था एवं वो उस समाज की गतिविधियों को देखते हुए आगे की रणनीति तय करता था। अपने अपने समाज की उन्नति के लिए लोग मन्दिरों में इच्छानुसार दान देते थें ताकि उस विद्वान को समाज के हित हेतु किये जा रहे