28 जनवरी 2015
प्रिय मित्र, आपने जिस रचना का उल्लेख किया है वह निश्चय ही हास्य उपन्यासों की श्रेणी में एक अद्वितीय कृति है जिसको पढ़कर किसी भी व्यक्ति को अपनी निरंतर हंसी को रोक पाना कठिन प्रतीत होगा.पुरे उपन्यास में पत्रों, घटनाओं एवं परिस्थितियों का ऐसा तन-बना बना गया है जो कथानक के प्रवाह को पंक्ति दर पंक्ति रोचक बनाये रखता है. इस रचना पर यदि चलचित्र या धारावाहिक बनाया जाये तो वह बहुत लोकप्रिय हो सकता है. आपके ही नामराशि लेखक श्री ज्ञान चतुर्वेदी इस कृति के लिए बधाई के पत्र हैं. हिंदी साहित्य में व्यंग्य की धारा को प्रवाहित एवं संवर्धित करने में उनके योगदान को देखते हुए , उन्हें पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना जाना पूरी तरह उपयुक्त है.
28 जनवरी 2015