ख्याल होगा। प्याज के दाम दोबारा बढ़े थे। पांच रुपए में एक प्याज लेने पर आंखों से आंसू झरे थे। तभी निम्न लिखित रचना कल्पना में आयी थी। पढ़ें।
एक कवि ने
सम्पादक को अकेला पाया
इधर-उधर देखा
किसी को ईर्द-गिर्द न पा
झट कक्ष मेें घुस आया
सम्पादक ने सर उठाया
अवांछित तत्व को सामने देख
बुरा सा मुंह बनाया
कंधे से लटके झोले
और हाथ में पकड़े फाइल देख
सम्पादक जी उपेक्षित भाव से बोले-
क्या है?
अनुकूल अवसर देख
कवि ने झोला का मुंह खोला
झोला देख सम्पादक का दिल डोला
सम्पादक जी प्याज से भरा
झोला देख खुश हो गए
कवि को आउट करते-करते रूक गए
वे प्याज नहीं
मानो राम रतन धन पाये थे
शायद इसीलिए
सुबह के आखबार में
अपनी कविता के साथ कवि जी छाये थे।😂
✍कृष्ण मनु