shabd-logo

मीठी शरारत

10 अक्टूबर 2019

451 बार देखा गया 451

मेरी नयी लघुकथा


मीठी शरारत


बात उन दिनो की है जब मैं हाईस्कूल का विद्यार्थी था। प्राइमरी स्कूल से आये एक साल हुआ होगा। अभी भी अनजानापन, झिझक, भय पूरी तरह गये नहीं थे। मित्र भी नहीं बन पाये थे। स्कूल आना, क्लास करना और छुट्टी होते ही वापस हो जाना। सारे काम खामोशी में ही होते थे।

स्थितियाँ ऐसी ही थीं कि एक रोज.....


हिन्दी पढ़ाने मास्टर साहब आए। हट्टा-कट्टा बदन। पचास पार करती आयु। सिर पर अध पके बाल किंतु ठीक से संवरे हुए। चेहरा खुरदरा पर मुस्कान का स्थायी निवास। कुल मिलाकर मुझे अच्छा लगने वाले हिन्दी के मास्टर साहब।


आते ही कल का बाकी बचा पाठ शुरु करते हुए उन्होंने सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी कविता का पाठ सस्वर करने लगे-


चित्रा ने अर्जुन को पाया शिव को मिली भवानी थी

खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी


मास्टर साहब का स्वर ऐसा था कि क्लास के बदमाश लड़के भी ध्यान लगा बैठते थे। उधर उनका पाठ जारी था इधन मेरी बाल-सुलभ हरकत। मैंने अगली पंक्ति में बैठे दो जोड़ियों पर नजर डाली। अनायास मेरे मन में कुछ चुलबुली-सी सोच उभरी और काफी प्रयास करने के बावजूद फिस्स से हंसी निकल गयी । हाथ से भी हंसी रोकने का प्रयास विफल रहा था।


मास्टर साहब का स्वर-पाठ अचानक थम गया। सदा मौजूद रहने वाली मुस्कान गायब थी। उसकी जगह क्रोध ने ले ली थी- "कौन है? हाथ ऊपर करो।" गम्भीर आवाज सुनते ही मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। हाथ अनायास ऊपर उठ गया।


उंगली का इशारा पाते ही मैं मरी-सी चाल में मास्टर साहब के पास आ गया। आदेश के पहले ही हथेली फैलाकर खड़ा हो गया। उन्होंने डस्टर उठाकर मारने की कोशिश की ही थी कि बीच में मेरे बगल में बैठा लड़का तेजी से आया और मेरी हथेली पर उसने अपनी हथेली रख दी। मास्टर साहब रूक गये। हैरत से उस लड़के को जो क्लास मॉनिटर था , देखा-" गोविंद तुम! क्या हुआ?"


-"मास्टर साहब, दोषी सिर्फ यह लड़का नहीं। हमसब हैं। हमसब को सजा मिलनी चाहिए।"


-"क्यों?"मास्टर साहब के हैरत में और इज़ाफा हो गया।


-" मास्टर साहब, उधर उस तरफ लड़को वाले बेंच पर अर्जुन बैठा हुआ है और इधर लडकियों वाली बेंच पर चित्रा बैठी है। उधर शिव शंकर बैठा है और इधर भवानी बैठी है। आप उधर पाठ कर रहे थे तो इधर पिछे बैठे सारे लड़के मुंह दबाकर हंस रहे थे। इसकी हंसी निकल गयी तो....."


-" बस-बस समझ गया। सब के सब शरारती हो। शर्म नहीं आती । यह स्कूल है। यहाँ सीखने आते हो। अच्छी बातें। अच्छा व्यवहार। सब माफी मांगो। अरे, ये दोनों तुम्हारी बहने हैं।"


हम सभी खड़े होकर माफी मांगने लगे। तभी घंटी बजी। क्लास से निकलते समय मास्टर साहब की मुस्कान कुछ अधिक गहरी थी।#

@कृष्ण मनु

धनबाद

9939315925


कृष्ण मनु की अन्य किताबें

1

मीठी शरारत

10 अक्टूबर 2019
0
2
0

मेरी नयी लघुकथामीठी शरारतबात उन दिनो की है जब मैं हाईस्कूल का विद्यार्थी था। प्राइमरी स्कूल से आये एक साल हुआ होगा। अभी भी अनजानापन, झिझक, भय पूरी तरह गये नहीं थे। मित्र भी नहीं बन पाये थे। स्कूल आना, क्लास करना और छुट्टी होते ही वापस हो जाना। सारे काम खामोशी में ही होते थे।स्थितियाँ ऐसी ही थीं कि

2

प्याज

11 अक्टूबर 2019
0
0
0

ख्याल होगा। प्याज के दाम दोबारा बढ़े थे। पांच रुपए में एक प्याज लेने पर आंखों से आंसू झरे थे। तभी निम्न लिखित रचना कल्पना में आयी थी। पढ़ें।एक कवि नेसम्पादक को अकेला पायाइधर-उधर देखाकिसी को ईर्द-गिर्द न पाझट कक्ष मेें घुस आयासम्पादक ने सर उठायाअवांछित तत्व को सामने देखबुरा सा मुंह बनायाकंधे से लटके

3

भस्मासुर

14 अक्टूबर 2019
0
1
0

लघुकथाभस्मासुर - अलख निरंजन!- आ जाइए बाबा पेड़ की छाह में। बाबा के आते ही वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया- आज्ञा महाराज। बाबा ने खटिया पर आसन जमाया। बोले- बच्चा, तेरा चेहरा मुरझाया हुआ है। दुःखी लगते हो। दुख का करण बता, बेटा। चुटकी में दूर कर दूंगा। - एक दुख हो तो बताऊं। दुख का बोझ उठाते-उठाते मैं हं

4

बोझ

18 अक्टूबर 2019
0
0
0

लघुकथाबोझक्या पुरूष, क्या स्त्री, क्या बच्चे , सब के सब आधुनिकता के घोड़े पर सवार फैशन की दौड़ में भाग रहे थे और वह किसी उजबक की तरह ताक रहा था । गाँव से आया वह पढा लिखा आदमी, भूल से , एक भव्य माल में घुस आया था और अब ठगा-सा खड़ा था।उसकी नजर एक आदमी पर पड़ी जो एक स्टील के बेंच पर बैठा था। उसके पास

5

जनता,तू नहीं जानती

4 नवम्बर 2019
0
1
0

जनता,तू नहीं जानतीवे तीन थेगांधी मैदान में किसी बड़े नेता का जोरदार भाषण चल रहा था। उन दिनो चुनाव का मौसम था। आये दिन ऐसे दृश्य दिख जाते थे।भाषण समाप्त होते ही तीनों चल दिये।रास्ते में एक ने पूछा- " देखा, कितनी भीड़ थी। मानो जन सैलाब उतर आया हो।" दूसरे ने कहा-" मैं कैसे देख सकता हूँ । मैं अंधा हूँ

6

प्याज

6 नवम्बर 2019
0
1
0

ख्याल होगा। प्याज के दाम दोबारा बढ़े थे। पांच रुपए में एक यसे आंसू झरे थे। तभी निम्न लिखित रचना कल्पना में आयी थी। पढ़ें।एक कवि नेसम्पादक को अकेला पायाइधर-उधर देखाकिसी को ईर्द-गिर्द न पाझट कक्ष मेें घुस आयासम्पादक ने सर उठायाअवांछित तत्व को सामने देखबुरा सा मुंह बनाया

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए