जनता,तू नहीं जानती
वे तीन थे
गांधी मैदान में किसी बड़े नेता का जोरदार भाषण चल रहा था। उन दिनो चुनाव का मौसम था। आये दिन ऐसे दृश्य दिख जाते थे।
भाषण समाप्त होते ही तीनों चल दिये।
रास्ते में एक ने पूछा- " देखा, कितनी भीड़ थी। मानो जन सैलाब उतर आया हो।"
दूसरे ने कहा-" मैं कैसे देख सकता हूँ । मैं अंधा हूँ।
फिर वह कहने लगा-" कितना बड़ा वक्ता था। तुमने उस नेता का भाषण सुना। गजब का सम्मोहन था उसकी आवाज में!"
पहले वाले के तरफ से कोई रिएक्शन नहीं पाकर वह थोड़ा नाराज हुआ-" कुछ बोलता क्यों नहीं? बहरा है क्या?" उसने कान के तरफ इशारा भी किया।
-" हाँ, मैं बहरा हूँ।"
दोनों ने तीसरे की ओर देखा-" तुम तो न अंधे हो, न बहरे। बताओ हमें , वह बड़ा नेता भाषण में बड़ी-बडी बातें कर रहा था, आश्वासन दे रहा था।"
तीसरे ने हाथ के इशारे के साथ गले से गों-गों की आवाज निकालते हुए बोलना शुरु ही किया था कि दोनों ने रोक दिया-" रहने दो, रहने दो। तुम तो गूंगे हो।"
वे चुप हो गए।
दो दिनो बाद उन्हें वोट देना था। एक ने कहा-" तुम किसे वोट दोगे?"
दूसरे ने,जो अंधा था, जवाब दिया-" उसे, जो मुझे रोशनी देगा। और तुम?" उसने हाथ से इशारा किया।
-" मैं उसे वोट दूंगा, जो मुझे सुनने की शक्ति देगा।"
फिर दोनों ने तीसरे से पूछा-" तुम किसे वोट दोगे?"
-" जो मुझे आवाज देगा ।" उसने हाथ के इशारे से और गों-गों की आवाज के साथ समझाया।
आगे रास्ता तीन भागों में बंटा था। उनके सामने जाति,धर्म और राष्ट्रवाद के झंडे लहरा रहे थे। वे अपने-अपने रास्ते चल दिये।#
@ कृष्ण मनु
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