मातृप्रेम भी भोग लिया
पितृप्रेम भी भोग लिया
अपनी प्रौढ़ावस्था में
मित्रप्रेम भी खूब चखा
दहलीज़ जवानी की छूकर
अब मिथ्यप्रेम में पड़ रहा
पर मुझको तू बतला साथी राष्ट्रप्रेम कब जागेगा ?
बचपन की ठिठोलियों से
तूने सबका मन मोह लिया
अपनी अल्हड तरकीबों से
अपना मतलब भी सिद्ध किया
अपना लालसाओं को
तूने हमेशा पूर्ण किया
तूने सारे क़र्ज़ चूका
खुदको बंधन से मुक्त किया
पर ऋण जो तुझपर धरती का
वो ऋण आखिर
आखिर कब तू चुकाएगा ?
देख ज़रा इस धरती को
देख ज़रा इस संस्कृति को
कितनी आज यें पीड़ित है
जर जमीन के चक्कर में
घर क्या अब तो राष्ट्र भी खंडित है
धर्म के ठेकेदार बने मूरख
पढ़े लिखे मजबूर हुए
जो सिद्धि हम सबने पाई थी
जो सबख हमने सीखे थे
कुछ चंद धूर्तों के कारण
वो सब अब चकनाचूर हुए
आज सुनो यदि कहीं भी तुम
बस रुदन सुनाई देता है
अपनी भारतमाता को अब
बेटा गाली देता है
मातृभूमि को खंडित करने
अपने ही द्रोही बनते है
जन जन की जां लेने वाले
आतंकी हीरो बनते हैं
बोस भगत को भूल सभी
कुछ द्रोही को याद सदा करते
जिनका लहूँ था देश के हित
उनकी ही निंदा हैं करते
बाँट दिया धरती को
अब हम सबको बांटना चाहे
डोरी वो राखी और मौली की
नफरत के खंजर से कांटना चाहें
कब तक सच से होकर अनजान
अपने कर्मों से भागेगा ?
कब राष्ट्रहित कार्य होगा ?
राष्ट्रप्रेम कब जागेगा ?
ये धरती अपनी माता है
ये राष्ट्र हमारा दाता है
हर धर्म-पन्त का पथिक
हम सबका मित्र और भ्राता है
लड़ने और लड़ाने वालों को
शायाद ये समझ न आता है
हम सदा एक थे ,एक रहेंगे
ये दिल के प्रेम का नाता है
अब तुम सारे मेरे मित्रों
बस मुझको ये बतला दो तुम
देश हित में, समाज हित में
मित्रता में , प्रेम हित में
तुम सबके निर्मल मन में
मातृभक्ति कब जागेगी?
राष्ट्रप्रेम कब जागेगा ?
-रजत द्विवेदी