काश तेरे घर के सामने
काश तेरे घर के सामने मेरा भी घर होता, उठाती जब खिड़की का परदा तो तेरा दीदार होता,मैं देखता सिर्फ़ तेरे घर की ओर,इसके सिवा और कहां मेरा नज़र होता,तू सिर्फ़ देखती हमे काश मैं आइना होता,लोग कहां कुछ समझ पाते,ये भी अपनी सूरत देखने का बस बहाना होता,काश तेरे घर के सामने मेरा घर होता.....copyright©by-ragh