shabd-logo

-रघू- नारायण के बारे में

no-certificate
अभी तक कोई सर्टिफिकेट नहीं मिला है|

-रघू- नारायण की पुस्तकें

raghu

raghu

दिल छू लेने वाली कविताओं और गजलों के लिए.....

निःशुल्क

raghu

raghu

दिल छू लेने वाली कविताओं और गजलों के लिए.....

निःशुल्क

-रघू- नारायण के लेख

मुझे जब से आपकी आदत हो गई है...

10 जनवरी 2016
0
0

मुझे जब से आपकी आदत हो गई हैमेरे दिल में भी क़यामत हो गई है।आपको जब कुछ खबर नहीं मेरीतो क्या बतलाना हमें मोहब्बत हो गई है।अब अपनी मुक़द्दर कहां कि दीदार हो आपकीदेख लिए ख्वाबों में तो दिल को राहत हो गई है।सुना है हमने कुछ लोगों से कि आजकलआपको भी मेरी चाहत हो गई है।झूम उठा दिल आप भी हमें चाहने लगेकी थ

हमे आपसे प्यार नहीँ

26 दिसम्बर 2015
5
3

अपने दिल पे हाथ रख के कहो किमुझे आपसे प्यार नहीं,मना लेंगे नादां दिल को अपनेदिल से हम इतने भी लाचार नहीं,चाहे हम क्यो न डूबे रहे अश्कों के समंदर मेंपर करेंगे आपका यूँ अब इन्तजार नहीं,दिल था नादां जो तुम पर आ गयावरना हम भी किसी पे यूँ करते एतवार नहीं,ऐसे तो मेरे किस्मत में है दर्द बहुतलिखने वाले ने ल

आरजू

26 दिसम्बर 2015
4
1

सागर नहीं आँसू थे मेरे जिसमें वो कश्ती चलाते रहे,मंजिल मिल जाए उनको इसलिए हम आँसू बहाते रहे!!!!!

मोहब्बत की मिशाल

25 दिसम्बर 2015
0
0

तरस गए हैं.....

25 दिसम्बर 2015
3
2

ग़ज़ल चले थे साथ जिनके फलक तक के सफ़र के लिएतरस गए हैं आज उनसे ही एक नज़र के लिए।आज हुआ मालूम होता है ऐसा भी जहां मेंख़ुशी चाहो जिनकी वही ग़म देते हैं उम्र भर के लिए।फ़िक्र ना हो मेरा मगर उन्हें होता इतना एहसास किहै कोई दरिया बेचैन बहुत किसी समंदर के लिए।वे दुआ करते है मेरी तवाही का रब से हर वक्तऔर

तेरे बैगर

25 दिसम्बर 2015
3
1

ग़ज़लतेरे बैगर जिन्दगी अधूरी कहानी लगती हैजी रहा हूँ मगर जीना बेईमानी लगती है ,तेरी यादों के पल आने वाले हरेक अश्क को संभाले रखा हैतेरे प्यार की ये बतौर निशानी लगती है ,बेवफ़ाई के बाद अब कुछ भी कहाँ अच्छा लगता हैअब तो बेकार ये अपनी जवानी लगती है ,मेरे अफसाने सुनने वाले रोक न सके अश्क भीलोगों को मेरी

माँ अगर तू ....

23 दिसम्बर 2015
3
2

माँ तू अगर क़रीब होती है तो ...माँ तू अगर क़रीब होती है तोकितना अच्छा लगता है,मगर तेरे बैगर क्या बताए किये जहां कैसा लगता है,भीड़ होती है चारों ओर मगरकहाँ कोई अपना लगता है,ख़ुशियों की महफिल भी हो तोतन्हा जैसा लगता है,माँ सोचो कितना अच्छा होता तेरी आँचल की घनी छाँव में मैं सोता,बँद करता आँखें भी तोतू

काश तेरे घर के सामने

23 दिसम्बर 2015
3
0

 काश तेरे घर के सामने मेरा भी घर होता, उठाती जब खिड़की का परदा तो तेरा दीदार होता,मैं देखता सिर्फ़ तेरे घर की ओर,इसके सिवा और कहां मेरा नज़र होता,तू सिर्फ़ देखती हमे काश मैं आइना होता,लोग कहां कुछ समझ पाते,ये भी अपनी सूरत देखने का बस बहाना होता,काश तेरे घर के सामने मेरा घर होता.....copyright©by-ragh

काश तेरे घर के सामने

23 दिसम्बर 2015
3
0

 काश तेरे घर के सामने मेरा भी घर होता, उठाती जब खिड़की का परदा तो तेरा दीदार होता,मैं देखता सिर्फ़ तेरे घर की ओर,इसके सिवा और कहां मेरा नज़र होता,तू सिर्फ़ देखती हमे काश मैं आइना होता,लोग कहां कुछ समझ पाते,ये भी अपनी सूरत देखने का बस बहाना होता,काश तेरे घर के सामने मेरा घर होता.....copyright©by-ragh

मीडिया वालों संभल के!

23 दिसम्बर 2015
0
0

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए