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Rahul Rishidev के बारे में

writer /singer/composer

पुरस्कार और सम्मान

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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2022-07-26
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2022-07-19

Rahul Rishidev की पुस्तकें

'राहुल ऋषिदेव' की गज़ले

'राहुल ऋषिदेव' की गज़ले

मेरा नमस्कार,सभी पाठकों को 🙏 instagram : real_rahul_rishidev whatsapp : 9672562598 ph : 9982400946

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'राहुल ऋषिदेव' की गज़ले

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Rahul Rishidev के लेख

उसकी बाहों में...

26 जुलाई 2022
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उसकी बाहों में आके बस बिखर जाना चाहता हूँइश्क़ में ना जाने क्यों, मैं अब मर जाना चाहता हूँवो तस्सली देता है, के हूँ संग तेरे, दर पे उसकेबस बन के वक़्त सा, मैं गुज़र जाना चाहता हूँइल्म नहीं,कोई होश नहीं द

तुम महलों की शान....

26 जुलाई 2022
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तुम महलों की शान, इक छोटा मकान हूँ मैंतेरे मेरे रिश्तो में, तुम जमीं, आसमान हूँ मैंआगे तुम्हारे मुस्कुराता हूँ ,जरूरी नहीं ख़ुश हूँये तो आदत है मेरी, दो चेहरे का इंसान हूँ मैंवाह, वाह किये नहीं थकने वा

सफर

26 जुलाई 2022
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राहतों की नींद-औ-सुकून मेरे सफर में कहाँतुझे पा लूँ दो घड़ी ही को मेरे मुकद्दर में कहाँमुझे उलझा के ही गया है इश्क़ का धागा औरजा के तेरी ही गली में खोजू मेरा घर है कहाँहर आते जाते अजनबी काफ़िले का हिस्सा

ख़्वाब

26 जुलाई 2022
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हर दर्द की कसक, मैं इक आह से सेक लेता हूँबेगुनाह अश्क़ कागज़ पर गिराता हूँ फेक देता हूँज़ब जहाँ तमाशा सी लगती है ज़िन्दगी मुझे मेरीउठता हूँ महफ़िल से, ख़्वाबों को लपेट लेता हूँजिस चीज की, हैसियत नहीं है मेर

हाल-ऐ-मन

26 जुलाई 2022
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हाल गर्दिश के सितारों सा हैदिल उलझें हुए तारों सा हैइक तरफ सांस बोझिल है मिरी दूसरी तरफ बेफिक्र आवारों सा हैउनकी हवाओं का रुख ना करवो शहर इश्क़ के मारो का हैकिसकी बनी है जो तू बना लेगाइश्क़ उतरते-च

जिंदगी की हसरतें

26 जुलाई 2022
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हमें जिंदगी की हसरतें कम ही चाहिएख़ुशी को ख़ुशी नहीं इन्हें गम ही चाहिएतेरे रूखे मिजाजों से तंग हैं ऐ जिंदगीतू जो भी अंदाज दे मगर नरम ही चाहिएतेरी गर्दिशों की धूल से लिपटा हूँ ऐसेमेरे आईने को भी मेरी आँ

लोग..

22 जुलाई 2022
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मुँह पर बखूबी मुस्कुराना जानते हैं लोग लगाना पीठ पर निशाना जानते हैं लोग जो चलना नहीं जानता दुनियाँ की चाल को सिखा के उसको गिराना जानते हैं लोग साँसे बहुत भारी होती हैं जिंदगी की शायद मुर्दा होते ही

मुफलिसी में

19 जुलाई 2022
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मैंने देखा है अपनों का साथ मेरी मुफलिसी में कमतर ही आँका गया हूं अक्सर हर किसी में समझ लो कि जिंदगी ने फुर्सत से मौका नहीं दिया मैं हाथ-पैर आखिर कितने चलाता अपनी बेबसी में जो माहिर है अपनी बात

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