हाल गर्दिश के सितारों सा है
दिल उलझें हुए तारों सा है
इक तरफ सांस बोझिल है मिरी
दूसरी तरफ बेफिक्र आवारों सा है
उनकी हवाओं का रुख ना कर
वो शहर इश्क़ के मारो का है
किसकी बनी है जो तू बना लेगा
इश्क़ उतरते-चढ़ते बाज़ारो सा है
इतनी इबादत खुदा की किया कर
वही है जो बे-सहारो का है
कौन है जो बाद तेरी फ़िक्र करे
जा के देख क्या हाल मज़ारो का है
तू ही नहीं इकलौता है बेसुध, ये
माज़रा हर नौजवान बीमारों का है
--- राहुल ऋषिदेव ---