उसकी बाहों में आके बस बिखर जाना चाहता हूँ
इश्क़ में ना जाने क्यों, मैं अब मर जाना चाहता हूँ
वो तस्सली देता है, के हूँ संग तेरे, दर पे उसके
बस बन के वक़्त सा, मैं गुज़र जाना चाहता हूँ
इल्म नहीं,कोई होश नहीं दिल को,के करू तो क्या
क्या चाहता हूँ मैं,और क्या कर जाना चाहता हूँ
ये इश्क़ का शहर है साहिब, रखिये पा संभाल के
फरयादें रहेंगी नाकाम,कहोगे के घर जाना चाहता हूँ
--- राहुल ऋषिदेव ---