तुम महलों की शान, इक छोटा मकान हूँ मैं
तेरे मेरे रिश्तो में, तुम जमीं, आसमान हूँ मैं
आगे तुम्हारे मुस्कुराता हूँ ,जरूरी नहीं ख़ुश हूँ
ये तो आदत है मेरी, दो चेहरे का इंसान हूँ मैं
वाह, वाह किये नहीं थकने वाले मुकर गए, वो
बेजा ही शायद कहते थे, कला की खान हूँ मैं
सपनों की सुफ़ेद चादर पर इतने रंग घोले मैंने
सभु को दिखे है के छोड़ो,काला निशान हूँ मैं
लोगो ने मतलब कु ऐसे याद किया है मुझे
जैसे बस समय पे पढ़ा जाऊंगा अज़ान हूँ मैं
मेरी ज़िन्दगी में कुछ ऐसे लोग भी है जिन्दा
खाते, बिछाते है, समझते है, दस्तरखान हूँ मैं
--- राहुल ऋषिदेव ---