राजयोग
जिस प्रकारआदिकाल के राजामहाराजा अपनी शान में सिक्के चलवाते थे वही दौर लाने की कोशिश दुबारा शुरू हो रही है पर यह प्रयास सफल बनाने के लिए आजका समाज तैयार नहीं है वह चाहता ही नहीं की लोग किसी राजा की व्यवस्था के अधीन रहे अपितु वे स्वछन्द विचारो से आबाद एक कोना चाहते हैजहाँ वे सुख से जी सके