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राजीव कुमार झा की डायरी

राजीव कुमार झा

3 अध्याय
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rajiv kumar jha ki dir

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पुस्तक के भाग

1

दिल का मलाल क्या कहा जाए

2 अगस्त 2016
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साथ गर आपका जो मिल जाए सफ़र जिन्दगी का आसां से कटजाए मन का बंद दरवाजा खुलने कोहैखुशबुओं की राह से जो गुजराजाए हल हो जाए खुदबखुद एक दिनमसलों को सवालों की तरह रखाजाएअंधेरों में ढूंढ़ते रहतेहैं जाने क्या उजालों का हाल क्या कहा जाएलोग कहते हैं आंसू पानी है ‘राजीव’ दिल का मलाल क्याकहा जाए 

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इंसानियत दफ़न होती रही

7 अगस्त 2016
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धर्म के नाम पर लोग लड़तेरहे इंसानियत रोज दफ़न होती रही  सजदे करते रहे अपने अपनेईश्वर के सूनी कोख मां की उजड़ती रही  मूर्तियों पर बहती रही गंगादूध की दूध के बिना बचपन बिलबिलातीरही  लगाकर दाग इंसान के माथे परहैवानियत इंसान को डसती रही किस किस को कैसे जगाएं‘राजीव’इंसानियत गहरी नींद मेंसोती रही

3

दास्तां सुनाता है मुझे

8 अगस्त 2016
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जब कभी सपनों में वो बुलाताहै मुझे बीते लम्हों की दास्तांसुनाता है मुझे  इंसानी जूनून का एक पैगामलिए बंद दरवाजों के पार दिखाता हैमुझे  नफरत,द्वेष,ईर्ष्या की कोईझलक नहीं ये कौन सी जहां में ले जाताहै मुझे  मेरे इख्तयार में क्या-क्यानहीं होता बिगड़े मुकद्दर की याददिलाता है मुझे  उसको भी मुहब्बत है यकीं ह

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