जब कभी सपनों में वो बुलाता
है मुझे
बीते लम्हों की दास्तां
सुनाता है मुझे
इंसानी जूनून का एक पैगाम
लिए
बंद दरवाजों के पार दिखाता है
मुझे
नफरत,द्वेष,ईर्ष्या की कोई
झलक नहीं
ये कौन सी जहां में ले जाता
है मुझे
मेरे इख्तयार में क्या-क्या
नहीं होता
बिगड़े मुकद्दर की याद
दिलाता है मुझे
उसको भी मुहब्बत है यकीं है
मुझको
उसके मिलने का अंदाज बताता
है मुझे
रुक-रुक कर आती दरवाजे से
दस्तक
ये वहम है या कोई बुलाता है
मुझे
‘राजीव’ तुम बिन बीता
अनगिनत पल शबे गम में रोज जलाता है
मुझे