इंसां मगर दिखता नहीं
शहर में चेहरे तो लाखोंहैं, इंसां मगर दिखता नहीं शीशे का मकां न है, पत्थरहाथ में कोई रखता नहीं आदमी आदमी का में जबसे भेदहोने लगा है हाथ मिलता है दिल मगर मिलतानहीं दोस्त कौन है और कौन हैदुश्मन जानते सब हैं कोई मगर कहतानहीं जुनूने इश्क के रंग भी अजीबहैं दर्द तो देता है दवा मगरदेता नहीं खरीदने बिकन