दास्तां सुनाता है मुझे
जब कभी सपनों में वो बुलाताहै मुझे बीते लम्हों की दास्तांसुनाता है मुझे इंसानी जूनून का एक पैगामलिए बंद दरवाजों के पार दिखाता हैमुझे नफरत,द्वेष,ईर्ष्या की कोईझलक नहीं ये कौन सी जहां में ले जाताहै मुझे मेरे इख्तयार में क्या-क्यानहीं होता बिगड़े मुकद्दर की याददिलाता है मुझे उसको भी मुहब्बत है यकीं ह