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रास्ता कहां से शुरू करूं ये दुविधा अक्सर रहती है (कविता)

14 फरवरी 2022

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रास्ता कहां से शुरू करूं ये दुविधा अक्सर रहती है
मंजिल शुरू करने से पहले ये दुविधा अक्सर रहती है
किताबो की दुनिया से शुरू हो जाती है मंजिल पाने की कहानी
कौन सी किताब पढूं ये दुविधा अक्सर रहती है
यूं तो मौज मस्ती की दुनिया है
कब कब और कहां कहां मौज मस्ती उडाउं ये दुविधा अक्सर रहती है
अगर मंजिल पाने की जिद है तो मंजिल को ही मौज मस्ती समझ लूं
या मौज मस्ती में जिन्दगी गवाकर इसे ही मंजिल समझ लूं
इसी खयालातो में खोया हूं ये दुविधा अक्सर रहती है,
अब समय मेरे पास इतना नहीं है कि मैं समय किसको दूं
मेरे पास एक तरफ परिवार है, तो एक तरफ समाज है
मैं इधर जाउं की उधर जाउं ये दुविधा अक्सर रहती है
परिवार के लिये चला तो कमाने में समय निकल जायेगा
और समाज के लिये चला तो समझाने में समय निकल जायेगा
परिवार के तरफ चला तो समाज बिखर जायेगा
समाज की तरफ चला तो परिवार बिखर जायेगा
क्या करूं क्या नहीं करूं ये दुविधा अक्सर रहती है
मैं जानता हूं कि पल पल मौत मेरी तरफ आ रही है
ये मौत मेरे परिवार मेरे समाज की ओर आ रही है
इसे कैसे रोकू दिनरात ये दुविधा अक्सर रहती है
मेरी मंजिल मेरी अपनी नही है, ये आपकी भी है
अगर तुम भी चलो तो ये राहे आपकी भी है
ये मेरा है, ये तेरा है यह कहना भी नहीं चाहिये
फिर भी कह देती है ये दुनिया ये दुविधा अक्सर रहती है
- कवि लेखक - सिद्धार्थ बागडे

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