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रातरानी

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“रातरानी का दिन सराबोर”जी तो करता है कि लाज शरम हया सब कुछ छोड़कर पोखरे में जाकर कूद पड़ूँ और पल्थी मारकर उसकी तलहटी में तबतक बैठी रहूँ जबतक मेरे हाथ पैर ठिठुर न जाय। यह गर्मी है कि आग की बारिस, सुबह होते ही पसीना चूने लगता है। बाबा के लगाए हुये पेड़ जो छाया व फल भी देते थे

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