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रिज़वानुल हक़ की पुस्तकें

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रिज़वानुल हक़ के लेख

अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं

2 जुलाई 2016
2
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अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैंकुछ शेर फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैंअब ये भी नहीं ठीक के हर दर्द मिटा देंकुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैंआँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगेये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैंदेखूं तेरे हाथों को तो लगता है, तेरे हाथमंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैंये इ

ख़ैरात

2 जुलाई 2016
1
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

2 जुलाई 2016
2
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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलेंढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती ये ख़ज़ाने तुझे मुम्किन है ख़राबों में मिलें तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलेंग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लोनश्श

नेक सुलूक

1 जुलाई 2016
3
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Villa

11 नवम्बर 2015
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विला

11 नवम्बर 2015
1
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राबिया हाउस

10 नवम्बर 2015
2
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राबिया हाउस

10 नवम्बर 2015
2
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लक्ज़री अपार्टमेंट्स

10 नवम्बर 2015
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केरला टावर

10 नवम्बर 2015
2
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