इलाहाबाद हाई कोर्ट, उत्तर प्रदेश "ऑर्डर! ऑर्डर! ये अदालत सभी गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए रुद्रेश्वरी माहेश्वरी को कातिल मानकर फांसी की सजा सुनाती है।" जज ने कोर्ट में अपना फैसला सुनाया। इतना सुनकर रुद्रेश्वरी की मम्मी धम्म से वही बैठ गई। रुद्रेश्वरी कटघरे में खड़ी अपनी ही सोच में गुम थी, शायद अभी भी इसी उम्मीद में कि जज अपना फैसला बदल देंगे। "द कोर्ट इज डिसमिस्ड नाउ!" कहते हुए जज अपनी जगह से खड़े हो गए। रुद्रेश्वरी सुन्न होकर अपनी ही जगह पर खड़ी हुई थी, मानो अभी कोई फरिश्ता आएगा और उसे यहां से ले जायेगा। 2 लेडी पुलिस कांस्टेबल ने रुद्रेश्वरी के हाथों में हथकड़ी पहनाई और वहां से ले जाने लगी। वहां मौजूद ज्यादातर लोगो की आंखों में गुस्से के भाव थे। वो सब गुस्से भरी दृष्टि से रुद्रेश्वरी को वहां से जाते हुए देख रहे थे। रुद्री की मां उसके पास आई और उससे लिपट कर रोते हुए बोली "रुद्री बेटा सच बता दे पुलिस को, कम से कम फांसी से तो बच जायेगी। तू तो हमेशा इस देश पर मर मिटने के लिए तैयार थी ना। प्लीज बेटा ये मां तेरे सामने हाथ जोड़ कर तेरी जान की भीख मांग रही है। बच्चे चाहे कितने भी नालायक हो लेकिन मां बाप के लिए वो हमेशा उनके जिगर का टुकड़ा ही होते हैं। मैं तुझे फांसी पर नही लटकने दूंगी। तू बस सच बता दे बेटा प्लीज, फांसी की सजा से बच जायेगी। जब पहली बार तू एसपी की कुर्सी पर बैठी थी तब तूने कहा था ना कि तू कभी कोई गलत काम नहीं करेगी। देख बेटा जो भी तेरा मकसद था, या किसी के भी कहने पर तूने इतना बड़ा कदम उठाया हो, बस जो भी है सब सच सच बता दे पुलिस वालो को। मुझे तो अभी भी यकीन नही हो रहा तूने इतना बड़ा कदम कैसे उठा लिया।" रुद्री ने खुद को संभाला और मुस्कुराते हुए अपनी मां को खुद से दूर करते हुए कहा "मरना तो मैं भी नही चाहती माई लेकिन क्या करूं शायद किस्मत को यही मंजूर है। बापू से कह देना जा रही हूं उनकी जिंदगी से हमेशा हमेशा के लिए दूर और इतनी दूर कि मेरी ये मनहूस शक्ल कभी नही दिखेगी उनको।" रुद्री की मां (सरोज) ने आंखों में आंसू भर कर कहा "नही बेटा! तेरे पापा ये बिलकुल भी नहीं चाहते। माना कि वो तेरी ऐसी हरकत पर नाराज़ जरूर थे और होते भी क्यों नही आखिर तूने अपने ही शहर के साथ गद्दारी की है। लेकिन वो तुझे कभी भी फांसी पर लटकते हुए नही देख सकते।"