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संघर्ष अपनों से

जगदीश सोनी

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जिनके लिए यह जीवन होता है उन्हीं से हम संघर्ष करना प्रारंभ कर देते हैं जबकि संघर्ष का नाम स्वयं को ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए किया गया वह कार है जिसमें मनुष्य अपनी समस्त प्रकार की शक्तियों को बिना किसी बिना किसी भय एवं बिना किसी डर के जवाब देता है लेकिन मैं भूल जाता है कि जिन लोगों से वह संघर्ष करने के लिए समाज के बीच में खड़ा हुआ है वही उसके जीवन के कर्णधार है जिन्होंने उसे यहां तक पहुंचाने का प्रयास किया है सूक्ष्म स्थिति से किया गया प्रयास आज उनके लिए इतना बड़ा झटका देगा कि मैं किसी के सामने रोटी ना सकेंगे इस विषय में उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था लेकिन आज बहन बेटा घर में आई नई नवेली बहू के कारण माता-पिता से संघर्ष करने के लिए खड़ा हो जाता है और सारी मर्यादाओं का उल्लंघन कर देता है जिससे उसे अपने जीवन में बनाए रखना चाहिए था अधीर हो जाता है वह धैर्य को खो देता है उसी अपने पराए का जो बोध है अब नहीं है यह वह तो से तब तक था जब तक उसे बाजार से कुछ चीजें खरीद नहीं होती कि मैं अपनी आवश्यकताओं को लेकर सदा माता-पिता के चारों ओर घूमता रहता था वह माता-पिता चेहरे की हल्की सी भाव भंगिमा में समझ जाती थी कि मेरे लाल के लिए कुछ चाहिए और मैं स्वयं ही अपनी ओर प्रश्न कर देती थी क्या करें स्कूल जाने के लिए नई साइकिल चाहिए या पिकनिक पर जाना है मैं तुम्हारे बाबा से पूछ लूंगी तुम चिंता ना करो कोशिश करूंगी कि तुम्हें पिकनिक पर जाते समय कुछ नए कपड़े भी दिलवा दूं जिससे तुम्हें अन्य लोगों के सामने शर्मिंदा ना होना पड़े लेकिन आज उसके सामने सिर्फ एक संघर्ष है उनसे से दूर जाने का उन्हें तन्हा छोड़ कर रोने और तड़पने के लिए छोड़ जाने का ऐसे संघर्षों से ना जाने कितनी जिंदगी आ जूझ रही है युवा क्यों नहीं समझते हैं जिन्होंने तुम्हारी कायाकल्प की है तुम उन्हें ऐसे समय में छोड़कर जा रहे हो जो उन्हें गले से लगाने का है उनके साथ बैठने का हंस बोलने का है उनकी बीमारियों उनकी परेशानियों जो अक्सर वृद्धा अवस्था में होती है को हल करने का है ना कि संघर्ष करने का और उन परियों को भी यह समझना चाहिए कि उनकी आने से घर टूटे नहीं बल्कि बने और नहीं मां-बाप की छत्रछाया को वे हंसते-हंसते स्वीकार करें इससे समाज में यह संघर्ष जो माता-पिता से दूर ले जाता है आगे ना हो  

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