बहुत पुरानी बात है दक्षिण भारत के शहर महिलारोप्य नामक नगर के पास एक शिव मंदिर था मंदिर में ताम्रचूड नामक एक सन्यासी रहता था | सन्यासी प्रतिदिन नगर भिक्षा मांगने जाताथा | भिक्षा से ही उसका जीवन यापन होता था | बची हुई भिक्षा को एक पात्र में डाल कर मंदिर की सेवा कार्य में लगे सेवकों को दे देता था |
उसी मंदिर के पास बिल में एक चूहा रहता था | चूहा भिक्षा पात्र पर चढ़कर अनाज खा लेता था और बचा अनाज पात्र से नीचे गिरा देता था जिसे उसके सांथी चूहे खा लेते थे | सन्यासी ने पात्र को ऊँची खूँटी पर टांग दिया परन्तु चूहा फिर भी भिक्षा पात्र तक पहुँच जाता था |
चूहे की हरकतों से सन्यासी बहुत परेशान हो गया | चूहे को दूर रखने के लिए कहीं से एक फटा बांस ले आया और भिक्षा पात्र के नीचे उसे पटकते रहता था | चोट लग जाने के डर से चूहा खूँटी पर चढ़ने से डरने लगा | एक दिन मंदिर में दूसरा सन्यासी आया जो ताम्रचूड सन्यासी का घनिष्ट मित्र था | ताम्रचूड ने अतिथि सन्यासी का स्वागत किया | रात में जब दोनों खाना खा कर बातें कर रहे थे तब ताम्रचूड फटे हुए बांस को बार बार जमीन पर पटक रहा था | अतिथि सन्यासी को लगा ताम्रचूड उसकी बातों पर ध्यान नहीं दे रहा और उसकी उनखी कर रहा है |
अतिथि सन्यासी क्रोध में आकर बोला – “ ताम्रचूड में बहुत देर से देख रहा हूँ तुम मेरी बातों पर ध्यान न देकर मेरा अपमान कर रहे हो | मै अभी यहाँ से जा रहा हूँ |”
ताम्रचूड अतिथि सन्यासी को समझाते हुए बोला -” मित्र ! तुम जैसा समझ रहे हो वैसा कुछ नहीं है | यहाँ एक चूहा रहता है वो मेरे अन्न पात्र से अनाज खा जाता है और बचे अनाज को नीचे गिरा देता है जिसे दुसरे चूहे खा जाते हैं | मैंने अन्न पात्र को उससे बचाने के कई प्रयास किये किन्तु वह किसी न किसी तरह वहाँ पहुँच ही जाता है | इस बांस से मैं उसे भगाने का प्रयास करता हूँ |”
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अतिथि सन्यासी ने कहा – “ क्या तुम्हें पता है उसका बिल कहाँ है ?”
ताम्रचूड ने नहीं में उत्तर दिया | अतिथि सन्यासी बोला – “ कोई भी कार्य बिना वजह के नहीं होता |उस चूहे का बिल अवश्य ही किसी खजाने के ऊपर है | खजाने की गर्मी के कारण ही चूहा इतना उछल रहा है |”
अतिथि सन्यासी ने पूछा – “ क्या तुमने उस चूहे का बिल देखा है ? अगर हम उसके बिल तक पहुँच गए तो उसके खजाने को निकाल देंगें फिर चूहा चाह कर भी तुम्हारे भिक्षा पात्र तक नहीं पहुँच पायेगा |”
अगले दिन प्रातः होते ही दोनों चूहे के पैरों के निशाँ से उसके बिल तक पहुँच गए | चूहा सन्यासी को देख कर बिल से भाग गया | दोनों सन्यासियों ने बिल को खोदना शुरू किया कुछ ही देर में चूहे के बिल से खजाना निकल आया | सन्यासी खजाना लेकर मंदिर आ गए और खजाने को मंदिर में दान कर दिया |
चूहा जब लौट कर आया तो उसका बिल तहस नहस हो गया था और खजाना भी नहीं था | चूहे को इससे बहुत आघात पहुंचा और उसका सारा आत्मविश्वास समाप्त हो गया | चूहे के पास अब भोजन भी नहीं था और उसे बहुत जोरों की भूख लगी थी उसने फिर मंदिर जाने का निर्णय लिया |
चूहे ने देखा ताम्रचूड फटे बांस को जमीन पर पटक कर उससे शोर कर रहा था तभी अतिथि सन्यासी कहता है – “मित्र ! अब तुमें इस फटे बांस की आवश्यकता नहीं है | चूहा अब चाह कर भी इस भिक्षा पात्र तक नहीं पहुँच पायेगा |”
चूहे ने अपनी पूरी ताकत से भिक्षा पात्र तक पहुँचने के लिए छलांग लगाई परन्तु चूहा वहाँ तक नहीं पहुँच पाया | चूहे ने कई बार प्रयास किया किन्तु हर बार असफल रहा | उसे देख कर दोनों सन्यासी उसका मजाक उड़ा रहे थे |
वह चुपचाप वहाँ से वापस आ गया | चूहें ने निश्चय किया की वह उसके धन को वापस ले कर आएगा | एक दिन रात में चूहा मंदिर पहुँच जाता है और जिस पेटी में धन रखा था उसे काटने का प्रयास करने लगता है | पेटी की आवाज सुनकर सन्यासी की नींद खुल गई और उसने पास रखे बांस से चूहे पर हमला कर दिया | एक बांस चूहे को लगा और चूहे ने गिरते पड़ते किसी तरह अपनी जान बचाई और फिर मंदिर नहीं आया |
BY SANJIT CHAURASIYA