
प्रशासन में पारदर्शिता एवं भ्रष्टाचार से निजात पाने हेतु बक्त बक्त पर भारत एवं अन्य देशों में कानूनों की मांग लगातार होती रही है।प्रशासन में पारदर्शिता एवं भ्रष्टाचार का मुद्दा पूरी दुनिया में हमेशा से ही एक गंभीर मुद्दा रहा है इसी कड़ी में 2005 में सूचना का अधिकार कानून बनाया गया जोकि आम नागरिकों को सुचना से सशक्त बनाता है।आम नागरिक सरकारी संस्थाओं,विभागों एवं सरकार की अन्य गतिविधियों,स्थानीय प्रशासन से संबंधित सूचनाओं की मांग आर टी आई कानून के तहत प्राप्त कर सकते हैं।यह कानून आम नागरिकों को सशक्त बनाता है एवं प्रशासन में पारदर्शिता लाता है।
सरकारें भ्रष्टाचार से सम्बंधित कानूनों एवं संबैधानिक संस्थाओं के प्रति ज्यादा सम्बेदंशीलता नहीं दिखाती एवम बक्त बक्त पर इन कानूनों एवं संस्थाओं को या तो बनाया ही नहीं जाता अथवा उन्हें कमजोर कर दिया जाता। उदा. के तौर पर लोकपाल के कानून को ले लें 4 वर्ष में लोकपाल की नियुक्ति ही नहीं हुई,सीवीसी हो अथवा आरटीआई।
2014 में बीजेपी भ्रष्टाचार मुक्त भारत के नारे के साथ सत्ता में तो आई परंतु उसका रवैया भी पुरानी सरकारों से ज्यादा अलग नहीं रहा।पिछले चार वर्ष में RTI कानून को विभिन्न प्रयासों द्वारा कमजोर करने की कोशिश की गयी।
RTI को कमजोर करने के प्रयास
- सूचना देने से इनकार–कई बार RTI के तहत सुचना देने से इंकार किया गया।उदा.नोटबंदी की तारीख एवं घोषणा से सम्बंधित सुचना हो अथवा PM की यात्राओं से सम्बंधित सूचना हो कई मौकों पर वर्त्तमान सरकार द्वारा सुचना देने से इंकार किया गया यहाँ तक तो ठीक है परंतु सुचना देने से इंकार करने के पश्चात् CIC ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की।
- आयोगों में रिक्तियां-कई राज्यों के सुचना आयोग स्टाफ एवं आयुक्तों के पद रिक्त होने की वजह से निष्क्रिय हो गए है अथवा पूरी शक्ति से काम नहीं हो रहा जिस कारण राज्य सुचना आयोगों में बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं। 31 मई 2017 इंडियन एक्सप्रेस रिपोर्ट -केंद्रीय सुचना आयोग में लगभग 26 हज़ार एवं राज्य सुचना आयोगों को मिलाकर देखें तो 31 दिसंबर 2017 तक 1,99,186 मामले लंबित हैं।कई राज्य आयोगों में मुख्य सुचना आयुक्त नहीं है तो कही एक सुचना आयुक्त के जरिये काम चलाया जा रहा है जबकि कानून मैं एक मुख्य सुचना आयुक्त एवं अधिकतम 10सुचना आयुक्तों की नियुक्ति का प्राबधान है। बहीं राष्ट्रीय सुचना आयोग की स्थिति भी ठीक नहीं है 11 आयुक्तों की जगह वर्त्तमान में सिर्फ 7 आयुक्त है एवं नवम्बर के महीने में 4 आयुक्तों रिटायर होने जा रहे है तब बच् गए मात्र तीन इस पर भी वर्त्तमान सरकार ने अभी तक नियुक्ति की प्रिक्रिया शुरू भी नहीं की। कहने का तात्पर्य यह है की राज्य एवं केंद सरकारों ने मिलकर आर टी आई कानून एवं सुचना आयोगों को निष्क्रिय करने की पुरज़ोर कोशिश की जा रही है।
- Whistleblower संरक्षण अधिनियम को ठीक से लागु करने के बजाय 2015 में वर्त्तमान सरकार द्वारा इसमें संशोधन की कोशिश।
- आर टी आई कानून में संशोधन की कोशिश-मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो संसद के अगले सत्र में आर टी आई कानून में संशोधन बिल लाया जायेगा जबकि इसका मसौदा(draft) अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है जोकि संसदीय परम्पराओं का उल्लंघन है।इस संशोधन के माध्यम से सरकार आर टी आई कानून को कमजोर बनाना चाहती है। RTI कार्यकर्ताओं द्वारा सरकार को कानून में परिवर्तन करने से रोकने हेतु एक मुहिम की शुरुआत की गयी है आप भी इस मुहिम में सहयोग करें लिंक https://t.co/oEk2Peq6cP?amp=1
सुचना देने से इंकार करना,आयोगों में बड़े स्तर पर पदों को रिक्त रखना एवं उन्हें भरने की गंभीर कोशिश न करना और अन्ततःकानून में संशोधन की कोशिश करना इससे स्पष्ट है की सरकार की ना तो भ्रष्टाचार से लड़ने में दिलचश्पी है और ना ही सरकार को प्रशासन में पारदर्शिता पसंद है।भ्रष्टाचार मुक्त भारत और जीरो टॉलरेंस जैसी बातें सिर्फ और सिर्फ जुमले हैं।