सड़क सुरक्षा को लोगों के द्वारा आंकड़ो, दुर्घटनाओं, लोगों की मृत्यु से जोड़कर देखा जाता है जबकि इसका एक और सबसे
महत्वपूर्ण पहलु है जिसका मुझे एवं मेरे जैसे अन्य आम लोगों को प्रतिदिन और दिन
में कई बार सामना करना पड़ता है लेकिन उसकी कोई बात नहीं करता, वह विषय शायद लोगों को गंभीर नहीं लगता क्योंकि अकसर लिखने
वाले, नीति निर्धारक और पत्रकार (जो इस विषय पर लिखते-पढ़ते हैं, जिनकी बातों को नीति-निर्धारक महत्त्व देते हैं) सड़क के उस
हिस्से में नहीं होते जहाँ वे उस डर, भय को महसूस
कर सकें, वे तो बड़ी गाड़ी के अन्दर होते हैं, उनके हाथ गाड़ी की स्टेरिंग पर एवं पैर एक्सेलरेटर पर होते हैं और धाएँ से
एक्सेलरेटर दवाकर साएँ से निकल जाते हैं लेकिन परेशानी मेरे जैसे लोगों को होती है,
हर दिन होती है, दिन में कई बार होती है|
मेरे जैसे लोग जो हर दिन नॉएडा की चौड़ी-चौड़ी सड़कों को जिन पर चलते हुए बड़ी गाड़ी
वाले यह समझते हैं कि यह तो उनके पिताजी ने बनवाई है और इस पर तो वे जैसे चाहे
वैसे गाड़ी चला सकते हैं, इस शहर में
रहने वाले एवं इस सड़क पर चलने वाले प्रत्येक व्यक्ति के पास उसके जितनी बड़ी गाड़ी
है| यह वाकया मेरे साथ हर दिन होता है और मेरे जैसे अन्य लोग जो सड़कों को पैदल
चलकर पार करते हैं उनके साथ भी होता है, हर दिन सड़क को पार करने का मौका जब आता है
तो मैं अन्दर से डर जाता हूँ, सड़क को पार करने का खयाल मन में भय पैदा कर देता है|
मैं जब अपने ऑफिस से वापिस लौटता हूँ तब मुझे नॉएडा की एक सड़क को पार करना पड़ता
है, उस सड़क से होकर हर सेकंड में कई गाड़ियाँ गुजरती हैं, बड़ी-बड़ी, लंबी-छोटी, चमचमाती, हरी,नीली, लाल-पीली,
अलग-अलग रंग रूप की गाड़ियाँ, अलग-अलग कंपनी की गाड़ियाँ लेकिन कमबखत सब गाड़ियों के
ड्राईवर एक जैसे बिना दिमाग के मूरख-सरपटबाज मानो जैसे उनकी रेल छूट रही, मानो सबकी रेल एक साथ छूट रही हो, सबको जल्दी
है, इतनी जल्दी की का कहें| जैसे ही मैं या मेरे जैसा कोई सड़क
को पैदल चलकर पार करने की कोशिश करता है, ध्यान दें-ध्यान दें, जहाँ से हम सभी सड़क
को पैदल चलकर पार करने की कोशिश करते हैं, संभव है लेख को पढ़ने वाले एडिटर के
गुरुर को चोट लग जाए और वह इसमें नुक्स निकाल दे, ध्यान दें जैसे ही हम सड़क को “पेडेस्ट्रियन
क्रासिंग” से पैदल चलकर पार करने की कोशिश करते हैं पहला कदम आगे बढ़ाने से लेकर जब
तक मैं उस सड़क को पार नहीं कर लेता मन मैं भय रहता है कि कहीं आज किसी गाड़ी से न
टकरा जाऊं, पहला कदम आगे बढ़ाने के लिए कई कदम आगे बढ़ाने पड़ते हैं, जैसे ही कदम आगे
बढ़ाते हैं, उस ओर से एक बड़ी गाड़ी वाला हमें सड़क पार करते देखकर भर्र से एक्सेलरेटर
दवाकर फर्र से निकल जाता है, अकसर गाडीवाज क्रासिंग के करीब आकर अपनी रफ़्तार को
पहले से तीज कर लेते हैं ताकि कोई सड़क पार करने के लिए आगे न निकल आये और उन्हें
उसे निकलने देने के लिए अपनी गाड़ी को धीमा करना पड़ जाए इसीलिये वे गति को और भी
तेज कर लेते हैं और हम अपने बढे हुए कदम पीछे खींच लेते हैं, फिर आगे दुबारा अपने
कदम आगे बढ़ाते हैं फिर कोई तेजी से आकर निकल जाता हैं लगता हैं उस गाड़ी वाले को
बहुत जरूरी काम रहा होगा, बड़ी गाड़ी वाला बड़ा आदमी होता है और उसे दस काम होते हैं, उसका एक-एक सेकण्ड लाखों का होता है, अगर उसका सेकण्ड का 100 वाँ हिस्सा
हमारी वजह से गाड़ी धीमी करने में खरच हो गया तो उसके साथ-साथ इसमें देश का भी भारी
नुकसान है, हमारा क्या हमें तो ऑफिस से वापिस आने के बाद यहाँ-वहाँ गप्पे लड़ानी
पड़ती हैं, बस जान सुरक्षित बच जाए| इस प्रकार कई प्रयासों एक बाद आखिर समूह में हम सड़क को पार कर जाते हैं|
यह वैसा ही जैसे हमने अपनी कक्षा दसवीं की परीक्षा पास की थी| भयंकर दर और भय के
माहौल में आखिर हमने अपनी दसवीं की परीक्षा पास कर ली थी उसके बाद सोच लिया था अब
कभी दसवीं में नहीं पढेंगे लेकिन उस सड़क को पार करने की परीक्षा हर दिन और दिन में
कई बार देनी पड़ती है| संभव है कई लोग उस परीक्षा को देते वक्त असफल हो जाते हैं और
उसे दुर्घटना का नाम देकर वह लंबी गाड़ी वाला बच निकलता है जबकि यह दुर्घटना नहीं
है बल्कि यह तो उस लंबी लम्बी गाड़ी वाले का सोच समझकर, जान-बूझकर, पूरे होशो-हवास
में लिया गया निर्णय होता है| उसके अनुसार सड़क सिर्फ गाड़ी वालों के लिए है, उसके
जैसों के लिए नकि पैदल चलने वालों, पैदल चलने वालों की तो भीड़ है और
भीड़ के अधिकार नहीं होते, गिनती नहीं होती|
सड़क सुरक्षा के संबंध में बहुत गंभीर भारी-भरकम बहसों
को देखा, लंबे-चौड़े आर्टिकल पढ़ने के बाद, भारी संख्या में आंकड़ों के विश्लेषण के पश्चात अंत में अपने निजी अनुभव से
यही समझ आया की सड़क सुरक्षा आंकड़ों, रिपोर्टों, संरचनात्मक ढाँचे के निर्माण(सड़कों, क्रासिंग आदि को
बेहतर बनाने) से भी कहीं महत्वपूर्ण कुछ है तो वह है व्यवहारिक परिवर्तन,
व्यवहारिक संवेदनशीलता, व्यवहारिक समाधान|(यहाँ व्यवहार से अभिप्राय गाड़ी चालक के
निर्णय लेने की क्षमता नहीं विवेक से है)
यह इस प्रकार के व्यवहार संबंधी समाधानों को डिजाइन करने से संबंधित है जो मानव के पूर्वाग्रहों और तर्कहीन व्यवहार को नियंत्रित कर सकें| खाली सड़कों पर तेज गाड़ी चलाना ठीक है लेकिन लोगों एवं वाहनों से भरी सड़कों पर, पेडेस्ट्रियन क्रासिंग के करीब आकर गाड़ी को और तेज कर लेना की कहीं कोई आगे बढ़कर सड़क पार करने की कोशिश न करे और उसे चन्द पलों के लिए अपनी गाड़ी को धीमा करना पड़ जाए| इसके संबंध में ठीक-ठीक से सोचने की आवश्यकता है क्योंकि एक्सीडेंट के घटने के लिए सर्वप्रथम यही मानसिकता उत्तरदायी होती है, उस गाड़ी चालक की सोच| अगर उस सोच को नियंत्रित कर सकें तो शायद हम सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले हजारों लोगों को बचा सकते हैं| लेकिन इसके लिए नीति निर्माण के वक्त इस पहलु पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है जबकि हमारी एजेंसियाँ अकसर ढाँचागत सुविधाओं, तकनीक आदि को अधिक महत्त्व देती हैं इसी कारण से हम इस समस्या का समाधान निकालने में असफल रहे हैं|