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शाम

28 फरवरी 2017

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यह शाम भी क्या खूब है

आती है कुछ ओढ़ के तन पर

काली सी चादर को डाल के

है रंग लगता कुछ अलग इसका

ये बनती भी खूब है सवरकर

ये शाम भी क्या खूब है

हर्ष मन में बढाती कुछ है घटाती

कुछ को है अपने रंग में रंगाती

कुछ अभिलाषा बढाती कुछ ख्वाब जगाती

कल की ये एक नई तस्वीर बनाती

ये शाम भी क्या खूब है

ये शाम भी क्या खूब है |

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शाम

28 फरवरी 2017
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यह शाम भी क्या खूब हैआती है कुछ ओढ़ के तन पर काली सी चादर को डाल केहै रंग लगता कुछ अलग इसका ये बनती भी खूब है सवरकरये शाम भी क्या खूब है हर्ष मन में बढाती कुछ है घटाती कुछ को है अपने रंग में रंगाती कुछ अभिलाषा बढाती कुछ ख्वाब जगाती कल की ये एक नई तस्वीर बनाती ये शाम भी क्या खूब हैये शाम भी क्या ख

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यादों के झरोखे

16 जुलाई 2017
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अधर तेरे कभी कपकपायें तो होंगे कभी मेरे यादों के झरोखे छाये तो होंगे,क्या भूलकर भी अभी तुम याद करती होक्यूँ आई हिचकी मुझे इस तरह क्या अब भी मुझे तुम याद करती हो ! उत्तेजनाओं के बादल उमड़ते तो होंगेबरसातो के हिलोर मन में उठते तो होंगें, क्या अब भी संजोकर बैठे हो उन सवनो को क्यूँ बहक गया हूँ इस म

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