यह शाम भी क्या खूब है
आती है कुछ ओढ़ के तन पर
काली सी चादर को डाल के
है रंग लगता कुछ अलग इसका
ये बनती भी खूब है सवरकर
ये शाम भी क्या खूब है
हर्ष मन में बढाती कुछ है घटाती
कुछ को है अपने रंग में रंगाती
कुछ अभिलाषा बढाती कुछ ख्वाब जगाती
कल की ये एक नई तस्वीर बनाती
ये शाम भी क्या खूब है
ये शाम भी क्या खूब है |