अधर तेरे कभी कपकपायें तो होंगे
कभी मेरे यादों के झरोखे छाये तो होंगे,
क्या भूलकर भी अभी तुम याद करती हो
क्यूँ आई हिचकी मुझे इस तरह
क्या अब भी मुझे तुम याद करती हो !
उत्तेजनाओं के बादल उमड़ते तो होंगे
बरसातो के हिलोर मन में उठते तो होंगें,
क्या अब भी संजोकर बैठे हो उन सवनो को
क्यूँ बहक गया हूँ इस मौसम में मैं
क्या अब भी बारिश में भीगा करती हो !
आँखों में मायूसी के आंसू आये तो होंगे
उनमें कोरें बनकर काजर बहे तो होंगे,
क्या अब भी मेरे लिए इतनी चाहत रखती हो
क्यूँ धड़क उठा ह्रदय जोर से
क्या अब भी मुझे तुम पाने की आश रखती हो !