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सिलसिला

8 फरवरी 2015

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featured imageआदमी आजीवन सीखता है सलीका छुटपन में बड़ी अंगुली थामकर नन्हे कदमों से/ नापता है आंगन का दायरा, रटता है परिभाषाएं/घर/आंगन/सड़क की। लड़कपन में- समझता है छुटपन की रटी परिभाषाओं के अर्थ फिर/जब 'आदमी' हो जाता है तो रचता है नई परिभाषाएं- घर/आंगन/सड़क और आदमी की। (काव्य संग्रह 'पीढ़ी का दर्द' से) -सुबोध श्रीवास्तव

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धन्यवाद विजय कुमार शर्मा जी सराहना के लिए..

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रचना आपकी योग्यताओं का अच्छा प्रकटन है- बधाई

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