सिलसिला
आदमी
आजीवन सीखता है
सलीका
छुटपन में
बड़ी अंगुली थामकर
नन्हे कदमों से/ नापता है
आंगन का दायरा,
रटता है
परिभाषाएं/घर/आंगन/सड़क की।
लड़कपन में-
समझता है
छुटपन की रटी
परिभाषाओं के अर्थ
फिर/जब 'आदमी' हो जाता है तो
रचता है
नई परिभाषाएं-
घर/आंगन/सड़क
और
आदमी की।
(काव्य संग्रह 'पीढ़ी का दर्द' से)