अगले दिन कल्पना धीर से मिली। वह अपनी खुशी से लाए हुए सामान को देना चाहती थी फिर यह सोच कर रूक गई कि धीर अभी तो यही है। दो दिन बाद दे दुंगी लेकिन मन में सपना की शंका और धीर के सवाल के डर से वह उसे बता ही नहीं पाई। हालांकि वह खुश थी। कल्पना का मन होता कि वह उसे बनवाने के लिए दें दे कि आ
आज माननीय प्रधानमंत्री जी ने अमुक घोषणा की है , आज हमें निम्न चीजो की खरीद करनी है , अगली छुटियो में हमें हमास द्वीप पर जाना है , आज पड़ोसी राम सिंह और कृष्ण सिंह लड़ गए आदि के बारे में ही बाते करते हुए हमारी ज़िंदगी गुजर रही है। आज की इस भाग दौड़ की दुनिया में किसी को ठहरने और सोचने का वक्त ही नही है।