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सुकीर्ति भटनागर की डायरी

सुकीर्ति भटनागर

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sukirti bhatnagar ki dir

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पुस्तक के भाग

1

वह लड़की

18 दिसम्बर 2019
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जूठे बर्तन साफ़ करती वह,दूध के बर्तन की चिकनाई चेहरे पर मलतीहै।कपड़ों के मैले बचे सर्फ़ में पैर डालउन्हें रगड़ती है, धोती है।झाड़ू लगाते समयआईने में स्वयं को निहारतीचुपके सेमुँह पर क्रीम या पाऊडर लगामंद मंद मु

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मैं और मेरा प्रियतम

19 दिसम्बर 2019
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दूर कहीं अम्बर के नीचे,गहरा बिखरा झुटपुट हो। वहीं सलोनी नदिया-झरना झिलमिल जल का सम्पुट हो। नीरव का स्पंदन हो केवल छितराता सा बादल हो। तरुवर की छाया सा फैला सहज निशा का काजल हो। दूर दिशा से कर्ण - उतरती बंसी की मीठी धुन हो। प्राणों में

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नारायणी

23 दिसम्बर 2019
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स्वीकृति / अस्वीकृति के बीचकेवलएक 'अ' का नहीं,अपितुअसमान विचार-धाराओं का,सोच का,भावनाओं का गहन अंतर होता है। इन दोनों के बीच,पैंडुलम सा झूलता मनव्यक्तिगत संस्कारोंऔर धारणाओं के आधार पर हीनिजी फ़ैसले करता है। आज,भ्रमित-मानसिकता के कारणभयमिष्रित ऊहापोह में भटकते हुएहमभ्र

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दिन सर्दी के

24 दिसम्बर 2019
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दिन सर्दी के भीने भीने भोर सुहानी रेशम जैसे।माँ की ममता जेसे मीठी सर्दी के दिन भी हैं वैसे। धूप सुहानी सर्दी की यह थिरक रही आँगन में ऐसे। फूल-फूल पर मंडराती है नन्हीं मुन्नी तितली जैसे। इसकी छुअन बड़ी अलबेली छू लेती है मन को ऐसे।गंगा-जल

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सुरक्षा कवच

3 जनवरी 2020
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बचपन में खेलते, दौड़ते ठोकर लग कर गिर जाने पर भैया का मुझे हाथ पकड़ कर उठाना,भीड़ भरे रास्तों पर, फूल-सा सहेज कर अँगुली पकड़ स्कूल तक ले जाना,और आधी छुट्टी में माँ का दिया खानामिल-बाँट कर खाना, याद आता है। बहुत-बहुत याद आता है। सर्कस और सिनेमा देखते समय हँसना - खिलखिलाना,बे-बात रूठना-मनाना,फिर देर रात त

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