स्वीकृति / अस्वीकृति के बीच
केवल
एक 'अ' का नहीं,
अपितु
असमान विचार-धाराओं का,
सोच का,
भावनाओं का गहन अंतर होता है।
इन दोनों के बीच,
पैंडुलम सा झूलता मन
व्यक्तिगत संस्कारों
और धारणाओं के आधार पर ही
निजी फ़ैसले करता है।
आज,
भ्रमित-मानसिकता के कारण
भयमिष्रित ऊहापोह में भटकते हुए
हम
भ्रूण हत्या की बात सोचते हैं
और
भूल जाते हैं
कि
अस्वीकृति की अपेक्षा
संभवत:
हमारी स्वीकृति ही
नारायणी बन
सुख, सौभाग्य की मृदु
सुगंध से
हमारा घर-आँगन महकाने वाली हो।
© सुकीर्ती भटनागर, चेतना के स्वर, प. 33