हमारी जिंदगी इस जवानी में उलझ-उलझ कर मर जाती है और बुडापा आया हाथ पेरो में जोश नहीं , शरीर में ताकत नहीं. बूढ़े बन गए, रहा सहा बेटे बेटी खा जाते है. कहते है ऐ. पिताजी ये दो पिताजी वो दो, मुझको संपत्ति में हिस्सा दो और जीवन हाई हाय करते करते छूट जाता है. पल्ले क्या आता है. कुछ भी आपके पल्ले नहीं आता है. खाली हाथ आये और खाली हाथ चले जाओगे ये ही खेल है. “जीवस्य जीव योग भोजनं ” अब इस खेल से बाहर निकलना चाहते हो. जैसे साधू संत निकल जाते है इस खेल से बाहर | बाबा बन जाते हैं सब कुछ छोड़ जाते है. लेकिन फिर आके उलझ गए तो फस गए, मर गए. सरल नहीं है. अब आपको भगवत ज्ञान सुनते सुनते कई वर्ष हो गए है ना . अच्छी बात है. ये आपका शरीर देख रहे हो ना. ये शरीर एक ढांचा है. जैसे की जो कार है ये एक ढांचा ही तो है. इसमें ड्राईवर बठेगा तो गाडी चलेगी. इसी तरह आपका शरीर भी एक ढांचा है. इसका ड्राईवर अलग है. वो है मनीराम है. क्या नाम है उसका? मनीराम मतलब “मन”. ये शरीर तो ढांचा मात्र है. और कुछ नहीं है. ये ढांचा गड़बड़ सड़बड होता है तो बीमार आदि होता है. सुक्षम शरीर दूसरा है. इसके अन्दर दूसरा शरीर है. वो सबसे ज्यादा ताकतवर है. इस शरीर से भी ज्यादा ताकतवर है. इसको वही चलाता है. इस ढाँचे को कौन चलाता है ? अन्दर का शरीर. दिखता है क्या ? नहीं दीखता ! अब चार चीजे इसमें बड़ी गहराई से सोचना. इस ढाँचे को चलाने वाला कौन ? “मन, चित, बुद्धि और अहंकार” समझ रहे हो ना ? अगर ये चार चीजें आपको समझ में आ गई तो आत्मज्ञान समझ में आ जाएगा. और ये चार ही चीजे आपको समझ में नहीं आई तो औंकार सुनो ! हरी नमः करो पर इस ढाँचे से कभी भी मोक्ष नहीं मिलता है हामारे शरीर के अन्दर मन बुद्धि चित और अहंकार हैं जिन्हें समझ कर उन पर विजय पाना आवश्यक हैं.