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मानव जीवन का लक्ष्य क्या है?

6 अगस्त 2015

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मनुष्य जीवन का अधिकांश भाग आहार, निद्रा, भय और भोग में व्यतीत हो जाता है। शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति में समय और शक्तियों का अधिकांश भाग लग जाता है। विचार करना चाहिए कि क्या इतने छोटे कार्यक्रम में लगे रहना ही मानव जीवन का लक्ष्य है? यह सब तो पशु भी करते हैं। यदि मनुष्य इसी मर्यादा के अंतर्गत घूमता रहे, तो उसमें और पशु में क्या अंतर रह जाएगा? सृष्टि के समस्त जीवों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पाने के कारण मनुष्य का उत्तरदायित्व भी ऊँचा है। जो अपने महान् कर्तव्य की ओर ध्यान नहीं देता, निश्चय ही वह मनुष्यता का महान् गौरव प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। दुःख और अधर्म को हटाकर सुख और धर्म की स्थापना करना, मनुष्य जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। ईश्वर ने जो योग्यताएँ और शक्तियाँ मानव प्राणी को दी हैं, उनका सदुपयोग यही हो सकता है कि दूसरों की सहायता की जाए, उन्हें सुख एवं उत्तम जीवन बिताने में सहयोग दिया जाए। बेशक, शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए श्रम करना आवश्यक है, परंतु यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जीवन-निर्वाह की साधारण समस्या को हल करने के उपरांत जो समय और शक्ति बचती है, उसे परमार्थ में, संसार की भलाई में लगाना चाहिए। जो मनुष्य स्वार्थ पर से दृष्टि हटाकर परमार्थ पर जितना ध्यान देता है, समझना चाहिए कि वह उतना ही जीवन का सद्व्यय कर रहा है।
सुरेन्द्र सिंह आर्य

सुरेन्द्र सिंह आर्य

* वेद का निर्देश * तन्तुतन्वन रजसो भनुमन्विहि ,ज्योतिष्मत पथो रक्षा धियो कृतान I अनुल्वन वयत जोगुवामयो , मनुर्भव जनया दैव्यं जनम I --ऋग्वेद -१०/५३/६ भावार्थ --हे मनुष्य ! संसार के ताने -बाने को बुनता हुआ भी तू प्रकाश के पीछे चल I बुद्दि से परिष्कृत प्रकाशयुक्त मार्गो की तू रक्षा कर I निरंतर ज्ञान और कर्म के मार्ग पर चलता हुआ उलझन रहित कर्म का विस्तार कर तथा अपने पीछे दिव्य गुणयुक्त उत्तराधिकारी को जनम दे I इस प्रकार तू मनुष्य बन l वेद का यही आदेश मानव जीवन का लक्ष्य है।

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हमारी सरकार खुद ही कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानती और ना ही कोई इस बारे में कुछ कहता है।

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जो भाग्य में है , वह......

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सौ गुना आनंद.....

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क्रोध का पूरा खांनदान है......

3 फरवरी 2015
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क्या आपको पता है? क्रोध का पूरा खांनदान है...... :-क्रोध की एक लाडली बहन है ।। जिद ॥ :-क्रोध की पत्नी है..... ॥ हिंसा ॥ :-क्रोध का बडा भाई है ॥ अंहकार ॥ :-क्रोध का बाप जिससे वह डरता है..... ॥ भय ॥ :-क्रोध की बेटिया हैं ॥ निंदा और चुगली ॥ :-क्रोध का बेटा है...... ॥ बैर ॥ :-इस खानदान की नकचडी बहू है..... ॥ ईर्ष्या॥ :-क्रोध की पोती है...... ॥ घृणा ॥ :-क्रोध की मां है ...... ॥ उपेक्षा ॥ और क्रोध का दादा है ।। द्वेष ।। तो इस खानदान से हमेशा दूर रहें और हमेशा खुश रहो।

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"मन चंगा तो कठौती में गंगा"

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अकेलापन संसार में सबसे बड़ी सजा है।

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😡हम गुस्से मे चिल्लाते क्यों हैं ?.....

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एक इंसान की परिभाषा तो दी नहीं जा सकती,लोग ईश्वर को परिभाषित करने चलते हैं। कहने को तो उन्हें अंतरयामी कहते हैं,परन्तु बातें बनाने की कसर नहीं छोड़ते हैं।।

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श्री कृष्ण की चरित्र कथा ये कहती है कि ---

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ज्ञानयोग के मार्ग में चलने पर कभी कभी हम ये भूल जाते है कि हमें प्रकृति के नियमों की केवल जानकारी है, नियंत्रण नही। जिस प्रकार एक पेंडुलम को एक ओर खींचने पर वह दूसरी ओर जरूर जाता है उसी प्रकार कर्म, सुख और दुःख को जीवन में खिंच लाता है। ज्ञान का पर्दा माया के परदे से कम नही है। ज्ञान अगर उपयोग में न

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"अहंकार बडा सूक्ष्म होता है"

7 अगस्त 2015
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अहंकार बडा सूक्ष्म होता है ओर बडा कुशल होता है। ओर अपने महत्व को सिध्द करने के लिये कोई न कोइ रास्ता खोज लेता है । अंहकार ऐसा परिधान पहन लेता है कि उसको पहचानना कठीन हो जाता है। अंहकार बडा भारी बहुरूपिया है। तथा धार्मिक यात्रा के मार्ग का सबसे बड़ा बाधक। यही वो शैतान है जो मन के आधार पर कई र

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बुराई ना करे क्योंकि ??

9 अक्टूबर 2015
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       एक राजा ब्राह्मणोंको लंगर में भोजन करारहाथा। तब पंक्ति के अंत मैं बैठे एक ब्राम्हण को भोजन परोसते समय एक चील अपने पंजे में एक मुर्दा साँप लेकर राजा के उपर से गुजरी। और उस मुर्दा साँप के मुख से कुछ बुंदे जहर की खाने में गिर गई। किसी को कुछ पत्ता नहीं चला। फल स्वरूप वह ब्राह्मणजहरीला खाना खाते

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भवसागर का विचित्र खेल

9 अक्टूबर 2015
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       जो लोग ज्ञान को बड़े मन लगा के सुनते है उसको निश्चित ही मोक्ष मिलता है, परंतु सुनने के साथ साथ इसको  व्यवहार में भी लाना पड़ेगा ,केवल सुनने से काम नहीं चलेगा..दूध-दूध बोल देने से,..घी-घी बोल देने से ताकतवर नहीं हो जाएगा..उसको पीना भी पड़ेगा..अगर जीवन में सुखी होना चाहते हो तो ज्ञानी बनना पड़ेगा.

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संत कबीर की कहानी - 'आपसी विश्वास' और 'गृहस्थी का मूल मंत्र'

9 अक्टूबर 2015
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          संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी बैठा ही रहा। कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, ‘मुझे आपसे कुछ पूछना है। मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्य

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समझे सुक्ष्म शरीर को “मन, चित, बुद्धि और अहंकार”

9 अक्टूबर 2015
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    चित क्या है ? "चेता" तुम्हारा. अब ये ढांचाबैठा है इसमें चेता कहाँ जाता है तुम्हारा. कहा जाता है चेता तुम्हारा. अधिकतरचेता कहा जाता है तुम्हारा. हमारा चेता जन्म जन्मान्तर के किये गए कामों पर जाताहै. अनेक जन्मो से हम जो काम करते आये है ना. जैसे एक किसान का लड़का है तो किसानके लड़के का चेता कहाँ जाता

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सुक्ष्म शरीर और आप

16 अक्टूबर 2015
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     हमारी जिंदगी इस जवानी में उलझ-उलझ कर मर जाती है औरबुडापा आया हाथ पेरो में जोश नहीं , शरीर में ताकत नहीं. बूढ़े बन गए, रहा सहा बेटेबेटी खा जाते है. कहते है ऐ. पिताजी ये दो पिताजी वो दो, मुझको संपत्ति में हिस्सादो और जीवन हाई हाय करते करते छूट जाता है. पल्ले क्या आता है. कुछ भी आपके पल्लेनहीं आता

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क्या आप जानते हैं?

19 अक्टूबर 2015
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क्या आप जानते हैं?☞ खड़े खड़े पानी पीने वाले का घुटना दुनिया का कोई डॉक्टर ठीक नहीँ कर सकता।☞ तेज पंखे के नीचे या A. C. में सोने से मोटापा बढ़ता है।☞70% दर्द में एक ग्लास गर्म पानी किसी भी पेन किलर से भी तेज काम करता है।☞ कुकर में दाल गलती है, पकती नहीँ। इसीलिए गैस और एसिडिटी करती है।☞अल्युमिनम के ब

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परमात्मा का अंश

2 नवम्बर 2015
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परमात्मा का अंश अपने को पूर्ण रुप से जड,प्रकृति के साथ जोड लेता है सो वह जीव जगत  ओर उसी मे सुख-दुख का अनुभव करता है । पर जब वह जड से विमुख: हो कर चिन्मय तत्व के साथ  एकता का अनुभव करता है तब वह योगी कहा जाता है ।

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