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आपके कर्म,ईश्वर और कर्मफल का सिद्धाँत

9 मार्च 2015

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featured imageज्ञानयोग के मार्ग में चलने पर कभी कभी हम ये भूल जाते है कि हमें प्रकृति के नियमों की केवल जानकारी है, नियंत्रण नही। जिस प्रकार एक पेंडुलम को एक ओर खींचने पर वह दूसरी ओर जरूर जाता है उसी प्रकार कर्म, सुख और दुःख को जीवन में खिंच लाता है। ज्ञान का पर्दा माया के परदे से कम नही है। ज्ञान अगर उपयोग में न लाया जाये तो उससे व्यर्थ कुछ भी नही। जब व्यक्ति किसी ऐसी परिस्थिति में आता है जिस पर उसका कोई नियंत्रण नही तब उसे एहसास होता है की वह गलत जा रहा था। ऐसे में गुरु की आवश्यकता आ पड़ती है, एक ओर उसका ज्ञान जिस पर उसे घमंड था और दूसरी ओर उसकी हालत जिस पर उसका बस नहीं, व्यक्ति झुंझला जाता है और ईश्वर पर इसका आरोप लगाता है। ईश्वर तो केवल मदद करता है, सही गलत का चुनाव आप करते है। शरीर प्रकृति के नियमो पर चलता है, पृथ्वी पर आने पर तो ईश्वर को भी इनका पालन करना पड़ता है, चाहे वो उनकी मर्ज़ी ही क्यों न हो। २. ईश्वर ने मनुष्य को कर्म करने की स्वतंत्रता दी है । वो उसके कर्मों के फलों को ग्रहण नहीं करता। वो तो हमारी हर समय मदद ही करता है। कर्म अच्छे या बुरे दो प्रकार के होते हैं तो इनके फल भी अच्छे या बुरे दो ही प्रकार के होंगे। अब क्योंकि हम पृथ्वी पर हैं तो यहाँ हम पर प्रकृति के नियम लागू होते हैं और हमारे द्वारा किये गये कर्मों का हिसाब -किताब यहीं पर होता है और उसके हिसाब से हमारे पुण्य-पाप निर्धारित होते हैं इसलिये किये गये कर्मों के लिये मनुष्य ही ज़िम्मेदार है ,दूसरा कोई नहीं। साधारणता सभी सांसारिक दृष्टिकोण रखते हुये जीवन जीते हैं। जिसमें स्वार्थ के साथ जीवन यापन करना और अपने बच्चों का पालन पोषण करना और बस उनकी चिंता में जीवन काट देना। हमारा अगला जन्म कैसा होगा ,इस विषय पर ग़ौर ही नहीं करते, इसलिये इतने दुखों को भोगते हैं। ईश्वर और उनके न्याय को ध्यान में रखेगें तो संभवता इतनी ग़लतियाँ भी नहीं होंगीं ।अपने किये गये कर्मों के फल को यदि ईश्वर को समर्पित करदें ( अच्छा बुरा दोनों ) तो फिर कोई अपराध ही नहीं लगेगा । ३. हमें अपने कर्मो में साक्षी भाव रखना चाहिए। पर ध्यान रखें की हमारे अच्छे एवं बुरे कर्म से जो प्रभावित होता है उसका आशीर्वाद एवं श्राप उसके पुण्यों के अनुसार हमें प्रभावित करता है। इस प्रकार कर्म चक्र आगे बढ़ता जाता है। इसलिए बुरे कर्म करने से बचना चाहिए। श्राप काटने के लिए जन्म लेना ही पड़ता है। 4. कर्म करना बहुत अच्छा है, पर वह विचारों से आता है। इसलिए अपने मस्तिष्क को उच्च विचारों और उच्चतम आदर्शों से भर लो, उन्हें रात-दिन अपने सामने रखो, उन्हीं में से महान कार्य का जन्म होगा। ५. संसार को ईश्वर ने बनाया है। उसकी व्यवस्था एवं संचालन हेतु विधि-विधान भी उन्होंने बनाया है। हर व्यक्ति सुखी रहना चाहता है। इस संसार में सुखपूर्वक रहने हेतु मानव को उन विधि विधानों की व्यवस्था को समझना अनिवार्य है। अनेक ईश्वरीय विधानों में एक महत्वपूर्ण विधान कर्मफल का सिद्धाँत है। कर्मों का फल तुरन्त नहीं मिलता इससे सदाचारी व्यक्तियों के दु:खी जीवन जीने एवं दुष्ट दुराचारी व्यक्तियों को मौज मजा करते देखा जाने पर कर्मफल के सिद्धाँत पर एकाएक विश्वास नहीं होता। कर्मों का फल तत्काल नहीं मिलने के दो कारण है – १. फल को परिपक्व होने में समय लगता है। २. ईश्वर व्यक्ति के धीरज की तथा स्वभाव चरित्र की परीक्षा लेते हैं। कर्मों का लेखा-जोखा रखने हेतु चित्रगुप्त (अन्त:करण में गुप्त चित्र) गुप्त रूप से चित्त में चित्रण करता रहता है। अन्त:चेतना या ईश चेतना की अवहेलना बड़ा पाप है। कर्म के बन्धन तथा उससे मुक्ति के उपाय- सुख व दु:ख दोनों ही स्थिति में कोई प्रतिक्रिया न करके उस कड़ी को आगे बढ़ाने से रोकना। सुख को योग एवं दु:ख को तप की दृष्टि से देखें व उसके प्रति सृजनात्मक दृष्टि रखें। सुख के क्षण में इतराएँ नहीं। दु:ख के समय घबराएँ नहीं। दु:ख या विपत्ति हमेशा कर्मों का फल नहीं होती बल्कि हमारी परीक्षा के लिए भी आती है। इसलिए दु:खों व प्रतिकूलताओं के समय धीरज रखें डटकर उसका मुकाबला करें। इसके बाद ईश्वरीय न्याय के अनुसार आपको अनुकूलता मिलेगी।
नीलेश सोनी

नीलेश सोनी

बहुत खूब

9 मार्च 2015

विजय कुमार शर्मा

विजय कुमार शर्मा

जीवन की सच्चाई का अच्छा दर्शन कराया है-आभार

8 मार्च 2015

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कुंडलीनी शक्तियां

31 जनवरी 2015
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SCINCE OF HUMAN BODY

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एक शब्द है ..सत्य

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भारत की संस्कृति

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सत्य को समझिऐ

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श्री राम का वंश

31 जनवरी 2015
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हमारे अस्तित्व से 7 अंक जुडा हुआ है जो हमे इस प्रकृति और ब्रह्मांडीय रचना से जोड़ता है

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ॐ के शारीरिक लाभ

31 जनवरी 2015
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हर व्यक्ति मानसिक शांति ठूंठता है। जो उसे चाहते है वो इसे अपनाए।

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सुन्दर कविता जिसके अर्थ काफी गहरे हैं........

30 जनवरी 2015
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मैंने .. हर रोज .. जमाने को .. रंग बदलते देखा है .... उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है .. !!

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धारा 370

31 जनवरी 2015
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हमारी सरकार खुद ही कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानती और ना ही कोई इस बारे में कुछ कहता है।

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बलिदान ना सही पर हम छोटे काम तो कर सकते हैं

1 फरवरी 2015
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जो भाग्य में है , वह......

2 फरवरी 2015
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नफरतों का असर देखो.....

2 फरवरी 2015
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सौ गुना आनंद.....

3 फरवरी 2015
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ईश्वर के लिए यात्रा......

3 फरवरी 2015
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ईश्वर के लिए यात्रा करते समय अच्छी आदतो को बनाये रखना आवश्यक हैं......

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क्रोध का पूरा खांनदान है......

3 फरवरी 2015
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क्या आपको पता है? क्रोध का पूरा खांनदान है...... :-क्रोध की एक लाडली बहन है ।। जिद ॥ :-क्रोध की पत्नी है..... ॥ हिंसा ॥ :-क्रोध का बडा भाई है ॥ अंहकार ॥ :-क्रोध का बाप जिससे वह डरता है..... ॥ भय ॥ :-क्रोध की बेटिया हैं ॥ निंदा और चुगली ॥ :-क्रोध का बेटा है...... ॥ बैर ॥ :-इस खानदान की नकचडी बहू है..... ॥ ईर्ष्या॥ :-क्रोध की पोती है...... ॥ घृणा ॥ :-क्रोध की मां है ...... ॥ उपेक्षा ॥ और क्रोध का दादा है ।। द्वेष ।। तो इस खानदान से हमेशा दूर रहें और हमेशा खुश रहो।

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"मन चंगा तो कठौती में गंगा"

3 फरवरी 2015
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संत रविदास

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अकेलापन सुकुन या सजा......

3 फरवरी 2015
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अकेलापन संसार में सबसे बड़ी सजा है।

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शायरियाँ ज्ञान के लिए....

3 फरवरी 2015
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कुछ शायरीयां ज्ञान की.....

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आपसी विश्वास.....

4 फरवरी 2015
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जिंदगी का लुत्फ......

4 फरवरी 2015
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जिंदगी का लुत्फ लेना है तो दिल मैं अरमान कम रखिये"

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😡हम गुस्से मे चिल्लाते क्यों हैं ?.....

5 फरवरी 2015
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एक इंसान की परिभाषा तो दी नहीं जा सकती,लोग ईश्वर को परिभाषित करने चलते हैं। कहने को तो उन्हें अंतरयामी कहते हैं,परन्तु बातें बनाने की कसर नहीं छोड़ते हैं।।

5 फरवरी 2015
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श्री कृष्ण की चरित्र कथा ये कहती है कि ---

6 फरवरी 2015
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SWINE FLU का इलाज.....

6 फरवरी 2015
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गुड़ खाने से फायदे :.......

7 फरवरी 2015
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शिवलिंग की वैज्ञानिकता ... .

2 मार्च 2015
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मंदिर शब्द का क्या अर्थ है?

2 मार्च 2015
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मंदिर शब्द का क्या अर्थ है? इस शब्द की रचना कैसे हुई?

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9 मार्च 2015
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प्रभु खोजने से नहीं मिलते ,उसमे खो जाने से मिलते हैं ....

9 मार्च 2015
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Hinduism - Science behind it .....

9 मार्च 2015
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जानिए रंगपंचमी से संबंधित पौराणिक जानकारी जानिए हम रंगपंचमी क्यों मनाते हैं?

10 मार्च 2015
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आत्मा की यात्रा...

11 मार्च 2015
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~ ~ * बहाने Vs सफलता *~ ~

12 मार्च 2015
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सफलता और सपने चाहिए या खोखले बहाने ...

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मानव जीवन का लक्ष्य क्या है?

6 अगस्त 2015
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मनुष्य जीवन का अधिकांश भाग आहार, निद्रा, भय और भोग में व्यतीत हो जाता है। शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति में समय और शक्तियों का अधिकांश भाग लग जाता है। विचार करना चाहिए कि क्या इतने छोटे कार्यक्रम में लगे रहना ही मानव जीवन का लक्ष्य है? यह सब तो पशु भी करते हैं। यदि मनुष्य इसी मर्यादा के अंतर्ग

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"अहंकार बडा सूक्ष्म होता है"

7 अगस्त 2015
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अहंकार बडा सूक्ष्म होता है ओर बडा कुशल होता है। ओर अपने महत्व को सिध्द करने के लिये कोई न कोइ रास्ता खोज लेता है । अंहकार ऐसा परिधान पहन लेता है कि उसको पहचानना कठीन हो जाता है। अंहकार बडा भारी बहुरूपिया है। तथा धार्मिक यात्रा के मार्ग का सबसे बड़ा बाधक। यही वो शैतान है जो मन के आधार पर कई र

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बुराई ना करे क्योंकि ??

9 अक्टूबर 2015
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       एक राजा ब्राह्मणोंको लंगर में भोजन करारहाथा। तब पंक्ति के अंत मैं बैठे एक ब्राम्हण को भोजन परोसते समय एक चील अपने पंजे में एक मुर्दा साँप लेकर राजा के उपर से गुजरी। और उस मुर्दा साँप के मुख से कुछ बुंदे जहर की खाने में गिर गई। किसी को कुछ पत्ता नहीं चला। फल स्वरूप वह ब्राह्मणजहरीला खाना खाते

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भवसागर का विचित्र खेल

9 अक्टूबर 2015
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       जो लोग ज्ञान को बड़े मन लगा के सुनते है उसको निश्चित ही मोक्ष मिलता है, परंतु सुनने के साथ साथ इसको  व्यवहार में भी लाना पड़ेगा ,केवल सुनने से काम नहीं चलेगा..दूध-दूध बोल देने से,..घी-घी बोल देने से ताकतवर नहीं हो जाएगा..उसको पीना भी पड़ेगा..अगर जीवन में सुखी होना चाहते हो तो ज्ञानी बनना पड़ेगा.

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संत कबीर की कहानी - 'आपसी विश्वास' और 'गृहस्थी का मूल मंत्र'

9 अक्टूबर 2015
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          संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी बैठा ही रहा। कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, ‘मुझे आपसे कुछ पूछना है। मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्य

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समझे सुक्ष्म शरीर को “मन, चित, बुद्धि और अहंकार”

9 अक्टूबर 2015
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    चित क्या है ? "चेता" तुम्हारा. अब ये ढांचाबैठा है इसमें चेता कहाँ जाता है तुम्हारा. कहा जाता है चेता तुम्हारा. अधिकतरचेता कहा जाता है तुम्हारा. हमारा चेता जन्म जन्मान्तर के किये गए कामों पर जाताहै. अनेक जन्मो से हम जो काम करते आये है ना. जैसे एक किसान का लड़का है तो किसानके लड़के का चेता कहाँ जाता

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सुक्ष्म शरीर और आप

16 अक्टूबर 2015
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     हमारी जिंदगी इस जवानी में उलझ-उलझ कर मर जाती है औरबुडापा आया हाथ पेरो में जोश नहीं , शरीर में ताकत नहीं. बूढ़े बन गए, रहा सहा बेटेबेटी खा जाते है. कहते है ऐ. पिताजी ये दो पिताजी वो दो, मुझको संपत्ति में हिस्सादो और जीवन हाई हाय करते करते छूट जाता है. पल्ले क्या आता है. कुछ भी आपके पल्लेनहीं आता

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क्या आप जानते हैं?

19 अक्टूबर 2015
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क्या आप जानते हैं?☞ खड़े खड़े पानी पीने वाले का घुटना दुनिया का कोई डॉक्टर ठीक नहीँ कर सकता।☞ तेज पंखे के नीचे या A. C. में सोने से मोटापा बढ़ता है।☞70% दर्द में एक ग्लास गर्म पानी किसी भी पेन किलर से भी तेज काम करता है।☞ कुकर में दाल गलती है, पकती नहीँ। इसीलिए गैस और एसिडिटी करती है।☞अल्युमिनम के ब

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परमात्मा का अंश

2 नवम्बर 2015
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परमात्मा का अंश अपने को पूर्ण रुप से जड,प्रकृति के साथ जोड लेता है सो वह जीव जगत  ओर उसी मे सुख-दुख का अनुभव करता है । पर जब वह जड से विमुख: हो कर चिन्मय तत्व के साथ  एकता का अनुभव करता है तब वह योगी कहा जाता है ।

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