shabd-logo

स्वीकारोक्ति

7 मई 2015

270 बार देखा गया 270
स्वीकारोक्ति जब उन से हम ने कर ली प्यार की, वोह यु मुकर गए जैसे पहचानते नहीं...."अमल"

अभिषेक कुमार -अमल- की अन्य किताबें

अभिषेक कुमार -अमल-

अभिषेक कुमार -अमल-

बहुत सोचा की हो जायेगा रुसवा "अमल" ज़माने में, फिर सोचा यही तरीका हो उसका मुझे आजमाने में ......."अमल"

8 मई 2015

अभिषेक कुमार -अमल-

अभिषेक कुमार -अमल-

सादर आभार श्री रोहित जी को एव शब्दनगरी संगठन को...."अमल"

8 मई 2015

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

अभिषेक जी, पूरी लगन के साथ जिस किसी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, करते जाइये, 'शब्दनगरी' पर आप अपनी पहचान हिंदी में बना सकते हैं, इसके लिए आपके पास पूरा अवसर है...धन्यवाद !

8 मई 2015

कुमार रोहित राज

कुमार रोहित राज

हमने भी सोच लिआ अपने बारे में कुछ ऐसा , कीचड़ में खिल रहा है फिर से कोई ....."कमल" बहुत अच्छा लिखा apne

8 मई 2015

1

मेरे शीर्षक की कहानी

5 मई 2015
0
2
8

मित्रो , मैं आज ही शब्दनगरी से जुड़ जहा थोडा प्रफुलित हूँ वही थोडा ससंकित भी हो गया हूँ क्यों की यहाँ मैंने अपने शीर्षक को नाम दिया "कुछ कुछ मेरे मन की" , मित्रो जब में यह शीर्षक सोचा था तोह कुछ अपने मन की करने को पर जब मैंने शब्दनगरी की सारी ओपचारिक्ताये पूर्ण कर ली तोह ध्यान से देखने पर शीर्षक कु

2

स्वीकारोक्ति

7 मई 2015
0
1
4

स्वीकारोक्ति जब उन से हम ने कर ली प्यार की, वोह यु मुकर गए जैसे पहचानते नहीं...."अमल"

3

रुसवा

8 मई 2015
0
1
0

बहुत सोचा की हो जायेगा रुसवा "अमल" ज़माने में, फिर सोचा यही तरीका हो उसका मुझे आजमाने में ......."अमल"

4

माँ

10 मई 2015
0
1
1

अश्रुत नयन, पुलकित है मन , विह्वल ,अधीर , विषाद है, माँ जब आई याद मुझे, सूना सूना ह्रदय अपार है... माँ आपकी याद में "अमल" का ह्रदय से नमन ..

5

मेरे अरमान......

15 मई 2015
0
0
0
6

हंगामा क्यों है बरपा , जब मैंने कुछ कर दी

22 मई 2015
0
3
3

जब हो परेशान जहा में, याद करो जब दिल से, परेशानी से हालत बुरे थे, उलझनों से थे वोह उलझे, जब हमने ख़ामोशी लाई, वोह कहते है आज, कुछ तोह हम कह दे.......... कहते कहते हम थक गए, इक बात मेरी न समझे, चाहत मेरी सभी दब गयी, परेशानियों को सहते कहते , अरमान सभी दिल में रह गये, यूँ कह कर चुप चुप रहते...........

7

मेरा आना, मेरा जाना

7 जून 2015
0
0
0

मेरा आना , मेरा जाना, बहुत मुस्किल होगा तुम्हे भूल जाना, बस बदल गये हो तुम सोचो जरा, वरना हम मुस्कुराते चेहरे के दीवाने है, आशुओ के नहीं , रखते है हम भी दम, अश्क-ऐ-गम पीने का, जीते जी हर रिश्ता निभाने का, रखा न वास्ता मेरे गम से तुमने , हम सहते गये तुम कहते गये , हम हँसते गये गम पीते गये , इन्तहा हु

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए