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मेरे शीर्षक की कहानी

5 मई 2015

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मित्रो , मैं आज ही शब्दनगरी से जुड़ जहा थोडा प्रफुलित हूँ वही थोडा ससंकित भी हो गया हूँ क्यों की यहाँ मैंने अपने शीर्षक को नाम दिया "कुछ कुछ मेरे मन की" , मित्रो जब में यह शीर्षक सोचा था तोह कुछ अपने मन की करने को पर जब मैंने शब्दनगरी की सारी ओपचारिक्ताये पूर्ण कर ली तोह ध्यान से देखने पर शीर्षक कुछ कुछ सुना सुना सा लगा अंतस मनन के पटल पर जोर देने पे याद आया की यह शीर्षक हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के "मन की बात" से मेल करता है परन्तु मित्रो ईस बात के मेल करने से व्यवहार भी मेल हो यह न तोह संभव है न ही असंभव इश लिए मेरी अभिव्यक्ति निश्चित ही स्वतंत्र एव स्वछंद होगी. सुभकामनाओ सहित ,,--"अमल"

अभिषेक कुमार -अमल- की अन्य किताबें

कविता रावत

कविता रावत

हार्दिक शुभकामनाएं

7 अगस्त 2015

अभिषेक कुमार -अमल-

अभिषेक कुमार -अमल-

श्री रोहित जी मैं आपका एव आपके विचारो के प्रति कृतज्ञ हूँ , और आपसे जुड़ने से बहुत ही खुसी हुई क्योंकि हम भी जौनपुरी है आपके पडोशी ......अमल

7 मई 2015

कुमार रोहित राज

कुमार रोहित राज

मै बहुत धन्यबाद देना चाहूँगा शब्दनगरी संगठन को जिसके अथक प्रयास से हम देश के ऐसे लोगो से जुड़ गए ,जो करना बहुत कुछ चाहते है लेकिन अच्छा प्लेटफॉर्म नहीं मिलता , शब्दनगरी संगठन के आभारी है हम .... "रोहित सुल्तानपुरी"

7 मई 2015

कुमार रोहित राज

कुमार रोहित राज

आपसे जुड़कर बहुत खुशी हुई | आपने सच कहा की ये 'मन की बात' जैसा है | "रोहित सुल्तानपुरी"

7 मई 2015

अभिषेक कुमार -अमल-

अभिषेक कुमार -अमल-

शुश्री प्रियंका जी एव वैभव जी तथा शब्दनगरी संगठन का मैं सादर कृतज्ञ हूँ, जिस तरह आप सभी ने अथक प्रयास कर हम हिंदी भाषा प्रेमियों को एक मंच प्रदान किया है इसके लिए आप सभी साधुवाद के पात्र है......शुभकामनाओ सहित " अमल"

6 मई 2015

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

अभिषेक जी , वैभव जी , ये हमारा सौभाग्य ही है जिसने हमे आपसे मिलाया .... धन्यवाद एवं शुभ कामनाएँ प्रियंका - शब्दनगरी संगठन से

6 मई 2015

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

अमल जी, शब्दनगरी मंच पर आपका स्वागत है !

6 मई 2015

वैभव दुबे

वैभव दुबे

आपका शब्दनगरी परिवार से जुड़ने के शुभ अवसर पर परिवार के एक सदस्य की तरफ से स्वागत और बधाई।

5 मई 2015

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मेरे शीर्षक की कहानी

5 मई 2015
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मित्रो , मैं आज ही शब्दनगरी से जुड़ जहा थोडा प्रफुलित हूँ वही थोडा ससंकित भी हो गया हूँ क्यों की यहाँ मैंने अपने शीर्षक को नाम दिया "कुछ कुछ मेरे मन की" , मित्रो जब में यह शीर्षक सोचा था तोह कुछ अपने मन की करने को पर जब मैंने शब्दनगरी की सारी ओपचारिक्ताये पूर्ण कर ली तोह ध्यान से देखने पर शीर्षक कु

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स्वीकारोक्ति

7 मई 2015
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स्वीकारोक्ति जब उन से हम ने कर ली प्यार की, वोह यु मुकर गए जैसे पहचानते नहीं...."अमल"

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रुसवा

8 मई 2015
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बहुत सोचा की हो जायेगा रुसवा "अमल" ज़माने में, फिर सोचा यही तरीका हो उसका मुझे आजमाने में ......."अमल"

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माँ

10 मई 2015
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अश्रुत नयन, पुलकित है मन , विह्वल ,अधीर , विषाद है, माँ जब आई याद मुझे, सूना सूना ह्रदय अपार है... माँ आपकी याद में "अमल" का ह्रदय से नमन ..

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मेरे अरमान......

15 मई 2015
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हंगामा क्यों है बरपा , जब मैंने कुछ कर दी

22 मई 2015
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जब हो परेशान जहा में, याद करो जब दिल से, परेशानी से हालत बुरे थे, उलझनों से थे वोह उलझे, जब हमने ख़ामोशी लाई, वोह कहते है आज, कुछ तोह हम कह दे.......... कहते कहते हम थक गए, इक बात मेरी न समझे, चाहत मेरी सभी दब गयी, परेशानियों को सहते कहते , अरमान सभी दिल में रह गये, यूँ कह कर चुप चुप रहते...........

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मेरा आना, मेरा जाना

7 जून 2015
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मेरा आना , मेरा जाना, बहुत मुस्किल होगा तुम्हे भूल जाना, बस बदल गये हो तुम सोचो जरा, वरना हम मुस्कुराते चेहरे के दीवाने है, आशुओ के नहीं , रखते है हम भी दम, अश्क-ऐ-गम पीने का, जीते जी हर रिश्ता निभाने का, रखा न वास्ता मेरे गम से तुमने , हम सहते गये तुम कहते गये , हम हँसते गये गम पीते गये , इन्तहा हु

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